पानी की बूँद

संज्ञा

पु.

पर्यायवाची

अनुवाद

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

पानी ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पानीय]

१. एक प्रसिद्ध द्रव जो पारदर्शक, निर्गंध और स्वादरहित होता है । स्थावर और जंगभ सब प्रकार की जीवसृष्टि के लिये इसकी अनिवार्य आवश्यकता है । वायु की तरह इसके अभाव में भी कोई जीवधारी जीवित नही रह सकता । इसी से इसका एक पर्याय 'जीवन' है । यौ॰—पनचक्की । पनबिजली । पानीपाँडे़ । पानीफल । विशेष—पानी यौगिक पदार्थ है । अम्लज और उद्जन नामक दो गैसों के योग से इसकी उत्पत्ति हुई है । विस्तार के विचार से इसमें दो भाग उद्जन और एक भाग अम्लजन; और गुरुत्व के विचार से १६ भाग अम्लजन और १ भाग उद्जन होता है, क्योंकि अम्लजन का परमाणु उद्जन के परमाणु से १६ गुना अधिक भारी होता है । गरमी की अधिकता से भाप बनकर उ़ड जाने और कमी से पत्थर की तरह ठोस हो जाने का द्रव पदार्थों का धर्म जितना पानी में प्रत्यक्ष होता है उतना औरों में नहीं होता । तापमान की ३२ अंश (फारेन- हाइट) की गरमी रह जाने पर यह जमकर बर्फ और २१२ अंश की गरमी पाने पर भाप हो जाता है । इनके मध्यवर्ती अंशों की गर्मी में ही वह अपने अप्रकृत रूप—द्रव रूप—में रहता है । पानी में कोई रंग नहीं होता पर अधिक गहरा पानी प्रायः नीला दिखाई पड़ता है जिसका कारण गहराई है । स्वाद और गंध भी उसमें उन द्रव्यों के कारण, जो उसमें घुले होते हैं, उत्पन्न होता है । ३९ अंश की गरमी में पानी का गुरुत्व अनुय द्रव्यों के सापेक्ष गुरुत्व के निश्चय के लिये प्रमाण रूप माना जाता है; सब तरल और ठोस द्रव्यों का गुरुत्व इसी से तुलना करके स्थिर किया जाता है । अवस्थाभेद से पानी के अनेक भेद हैं । यथा—भाप, मेघ, बूँद, ओला, कुहिरा, पाला, औस, बर्फ आदि । बूँद, कुहिरा, पाला, ओस आदि उसके तरल रूपांतर हैं, भाप और बादल वायव या अर्धवायव और ओला तथा बर्फ घनीभूत रूपांतर हैं । संसार को पानी मुख्यतः वृष्टि से प्राप्त होता है । झरनों और कुओं से भी थोड़ा बहुत मिलता है । पानी विशुद्ध अवस्था में बहुत ही कम पाया जाता है । प्रावः कुछ न कुछ खनिज, जांतव और वायव द्रव्य उसमें अवश्य मिले रहते हैं । वृष्टि का जल यदि पृथ्वी से ऊँचाई पर और कुछ दिनों तक वृष्ट ि हो चुकने अर्थात वायुमंडल स्वच्छ हो जाने पर किसी बरतन में एकत्र किया जाय तो शुद्ध होता है अन्यथा उसमें भी उपर्युक्त द्रव्य मिल जाते हैं । प्राकृतिक बर्फ का पानी भी प्रायः शुद्ध होता है । भभके में से खींचा हुआ पानी भी सब प्रकार के मिश्रणों से शुद्ध होता है, दवाइयों में यही पानी मिलाया जाता है । जो नदियाँ उजाड़ स्थानों, कठोर चट्टानों और कँकरीली भूमि से होकर जाती हैं उनका जल भी प्रायः शुद्ध होता है, पर जिनका रास्ता गरम भूमि और चट्टानों तथा धनी आबादी के बीच से है उनके पानी में कुछ न कुछ अन्य द्रव्य मिले रहते हैं । समुद्र के जल में क्षार और नमक के अंश अन्य प्रकार के जलों की अपेक्षा बहुत अधिक होते हैं जिससे वह इतना खारा होता है कि पिया नहीं जा सकता । भभके के द्वारा उड़ा लेने से सब प्रकार का पानी शुद्ध हो जाता है । समुद्र का पानी भी इस क्रिया से पेय बनाया जा सकता है । बैद्यक के अनुसार पानी शीतल, हलका, रस का कारण रूप, श्रमनाशक, ग्लानिहारक, बलकारक, तृप्तिदायक, हृदय को प्रिय, अमृत के समान जीवनदायक, मूर्छा, पिपासा, तंद्रा, वमन, निद्रा और अजीर्ण का नाश करनेवाला है । खारा जल पित्तकारक और वायु तथा कफ का नाशक है, मीठा जल कफकारक और वायु तथा पित्त को घटानेवाला है । भादों या क्वार में विधिपूर्वक एकत्र किया हुआ वृष्टिजल अमृत के समान गुणकारी, त्रिदोषशांतिकर, रसायन, बल- दायक, जीवनरूप, पाचन और वुद्धिवर्धक है । वेग से बहनेवाली और हिमालय से निकली हुई नदियों का जल उत्तम होता है, तथा मंद गति से बहनेवाली और सह्याद्रि से निकली हुई नदियों का पानी कोढ़, कफ, वात आदि विकारों को उत्पन्न करता है । झरने का और प्राकृतिक बर्फ के पिघलने से उत्पन्न जल उत्तम है । कुएँ का जल, यदि उसके सोते अधिक गहराई और कड़ी कँकरीली मिट्टी पर से निकले हों तो, उत्तम होता है, अन्यथा दोषकारक होता है । जिस पानी में कोई गंध या विशेष स्वाद न हो उसे उत्तम और जिसमें ये बातें हों उसे सदोष समझना चाहिए । पकाने से पानी के सब दोष मिट जाते हैं । प्राचीन आर्य तत्वज्ञानियों ने पानी को पाँच महाभूतों अर्थात् उन मूल तत्वों में जिनके योग से जगत् को और सब पदार्थों की उत्पत्ति हुई है, चौथा माना है । रस तन्मात्र से उत्पन्न होने के कारण रस इसका प्रधान गुण है और तीन पूर्ववर्ती तत्वों के गुण शब्द स्पर्श और रूप को गौण गुण कहा है । पाँचवें महाभूत या मूलतत्व पृथ्वी के गंध गुण का इसमें अभाव माना है । इसका रूप अर्थात् वर्ण सफेद, रस अर्थात् स्वाद मधुर और शीतल माना है । परमाणु में इसे नित्य और सावयव अर्थात् स्थूल रूप में अनित्य कहा है । पाश्चात्य देशों के द्रव्यशास्त्रविद् भी वर्तमान विज्ञान युग के आरंभ के पहले सहस्रों साल तक पानी को अपने माने हुए चार मूल तत्वों अग्नि, वायु, पानी और मिट्टी में से एक मानते रहे हैं । पर्या॰—अर्ण । क्षोद । पद्म । नभ । अंभ । कबंध । सलिल । वाः । वन । घृत । मधू । पुरीष । पिप्पल । क्षीर । विष । रेत । कश । वुस । तुग्य । सुक्षेम । वरुण । सुरा । अरविंद । धनुंधतु । जामि । आयुध । क्षय । अहि । अक्षर । स्त्रोत । तृप्ति । रस । उदक । पय । सर । भेषज । सह । ओज । सुख । क्षत्र । शुभ । यादु । भूत । भुवन । भविष्यत् । महत् । अप । व्योम । यश । महः । सर्णीक । स्वृतीक । सतीन । गहन । गंभीर । गंभलंग । ईम् । अन्न । हवि । सदन । ऋत । योनि । सत्य । नीर । रयि । सत् । पूर्ण । सर्व । अक्षित । वर्हि । नाम । सर्पि । पवित्र । अमृत । इंदु । स्वः । सर्ग । संवर । वसु । अंबु । तोय । तूप । शुक्र । तेजः । वारि । जल । जलाष । कमल । कीलाल । पाथ । पुष्कर । सर्वतोमुख । पानीय । मेघपुष्प । सल । जड़ । क । अंध । उद । नार । कुश । कांड । सवर । कर्व्वुर । व्योम । संव । इरा । वाज । तामर । कंवल । स्यंदन । क्षर । ऊर्ज । सोम । मुहा॰— पानी आना = (१) पानी का रस रसकर एकत्र होना । (२) कुएँ या तालाब में पानी का सोता खुलना । (३) घाव या आँख, नाक आदि में पानी भर आना । (४) घाव, आँख, नाक आदि से पानी गिरना । पानी उठाना = (१) पानी सोखना । पानी चूसना । जैसे,—मुलायम आटा खूब पानी उठाता है । (२) पानी अटाना । (दौरी या हत्थे में जितना पानी अँटता है, किसान लोग उसे उतना पानी उठाना बोलते हैं ।) जैसे,—वह हत्था खूब पानी उठाता है । पानी उतरना = पानी की तल या सतह का नीचा होना । पानी घटना । उतार होना । बाढ़ पर न रहना । (काम को) पानी करना = साध्य या सरल कर देना । सहज कर डालना । जैसे,—मैंने इस काम को पानी कर दिया । पानी का आसरा = नाव की बारी पर लगा हुआ कुछ कुछ झुका हुआ तख्ता जिसपर छाजन की ओलती का पानी गिरता है । आधी बारी । (लश॰) । पानी काटना = (१) पानी का बाँध काट देना । (२) एक नाली से दूसरी में पानी ले जाना । (३) तैरते समय हाथ से पानी को हटाना । पानी चीरना । पानी का बताशा = (१) बुलबुला । बुदबुद । (२) क्षणभंगुर वस्तु । क्षणस्थायी पदार्थ । पानी का बुलबुला = (१) बुलबुले की तरह क्षण में नष्ट या रूपांतरित होनेवाला । क्षणभंगुर । (३) नाशवान् । विनाशशील । पानी की तरह बहाना = अंधाधुंध खर्च करना । किसी चीज का आवश्यकता से बहुत अधिक मात्रा में खर्च करना । उड़ाना या लुटाना । जैसे,—उन्होंने लाखों रुपए पानी की तरह बहा दिए । पानी की पोट = (१) जिसमें पानी ही पानी हो । जिसमें पानी के सिवा और कुछ न हो । (२) वे साग, पात, तरकारियाँ आदि जिनमें जलीय अंश ही अधिक होता है, ठोस पदार्थ बहुत ही कम होता है । पानी के मोल = पानी की तरह सस्ता । बहुत सस्ता कौड़ियों के मोल । पानी के रेले में बहाना = (१) पान ी में फेंक देना । नष्ट कर देना । उड़ा देना । (२) पानी के मोल देच देना । कौड़ियों में लुटा देना । पानी चढ़ना = (१) पानी का ऊपर चढ़ना या ऊँचाई की ओर जाना । पानी की गति ऊँचाई की ओर होना । जैसे—इस नल में ऊपर पानी नहीं चढ़ता है । उ॰—सावर उबट शिखर को पाटी । चढ़ा पानि पाहन हिय फाटी ।—जायसी (शब्द॰) । (२) पानी बढ़ना । (३) सींचे जानेवाले खेत तक पानी पहुँचना । (४) सींचा जाना । (इस मुहावरे का प्रयोग केवल खेती के लिये किया जाता हैं, बारी बगीचे आदि के लिये नहीं) । पानी चढ़ाना = (१) पानी को ऊँचाई पर ले जाना । (२) पानी को चूल्हे पर रखना । अदहन देना । (३) सिंचाई के लिये खेत तक पानी ले जाना । (४) सींचना । पानी चलाना = पानी फेरना । नष्ट करना । चौपट करना । (क्व॰) । उ॰—ऐसे समय लखेउ ठकुरानी । पतिब्रत माझ चलायो पानी ।—लाल (शब्द॰) । पानी छानना = एक विशेष कृत्य जो हिंदुओं के यहाँ किसी को शीतल या चेचक रोग होने पर किया जाता है । विशेष—(नाम धरने अर्थात् रोगी को चेचक होना मान लिए जाने के तीसरे, पाँचवें और सातवें दिनों में जिस दिन शुक्रवार या सोमवार हो, स्त्रियाँ रोगी के सिर से कपड़ा छुलाकर उससे पानी छानती हैं । इस पानी में पहले से चना भिगोया रहता है । यदि वर्षा होती हो तो उसी का पानी लेकर छाना जाता है । इस कृत्य के हो जाने पर उन निषेधों का पालन नहीं करना पड़ता जिनका पालन नाम धरने के दिन से आवश्यक समझा जाता है) । पानी छूटना = रस रसकर पानी निकलना । थोड़ा थोड़ा पानी निकलना । रसना । पानी छूना = मलत्याग के अनंतर जल से गुदा को धोना । आबदस्त लेना (ग्राम्य) । (किसी वस्तु का) पानी छोड़ना = किसी चीज का रसना । थोड़ा थोड़ा पानी निकलना या देना । जैसे, किसी तरकारी का आगपर चढ़ाने पर छोड़ना । पानी टूटना = कुएँ ताल आदि में इतना कम पानी रह जाना कि निकाला न जा सके । कुएँ ताल आदि का पानी खर्च होकर बहुत थोड़ा रह जाना । पानी तोड़ना = पानी को डाँड़या बल्ली से चीरना या हटाना । पानी काटना (मल्लाह) । पानी थामना = धार की ओर नाव ले जाना । धार चढ़ाना । (लश॰) । पानी दिखाना =(१) घोड़े बैल आदि को पानी पिलाने के लिये उनके सामने पानी भरा बरतन रखना या उन्हें पानी तक ले जाना । (२) पशुओं को पानी पिलाना । पानी देना = (१) सींचना । पानी से भरना । पानी से तर करना । (२) पितरों के नाम अंजलि में लेकर पानी गिरना तर्पण करना । जैसे,—उसके कुल में कोई पानी देनेवाला भी नहीं रह गया । पानी न माँगना = किसी आघात या विष आदि से इतनी जल्दी मर जाना कि एक शब्द भी मुँह से न निकले । चटपट दम तोड़ देना । तत्क्षण मर जाना । उ॰—साँप इस मुल्क के बाजे ऐसे जहरीले होते हैं कि जिनका काटा आदमी फिर पानी न माँगे ।—शिवप्रसाद (शब्द॰) । पानी पड़ा = ढीला ढाला । जो कसा या तना न हो । जैसे,— कनकौवा पानी पड़ा है अर्थात् उसकी डोर ढीली है । पानी भर नींव डालना या देना = ऐसा काम आरंभ करना जो टिकाऊ न हो । ऐसी वस्तु को आधार बनाना जिसकी स्थिति दृढ़ न हो । पानी पर नींव होना = किसी काम या आयोजन का आधार दृढ़ न होना । किसी काम या वस्तु का टिकाऊ न होना । पानी पड़ना = जल अभिमंत्रित करना । मंत्र पढ़कर पानी फूँकना । पानी पर दम करना । पानी फूँकना । पानी पाड़ना = दे॰ 'पानी छानना' । पानी पर बुनियाद होना = दे॰ 'पानी पर नीवँ होना' । पानी परोरना = पानी पढ़ना या फूँकना । पानी पानी करना = अत्यंत लज्जित होना । लज्जा के मारे पसीने पसीने हो जाना । लज्जा से कट जाना । जैसे,—वह इस बात को सुनकर पानी पानी हो गया । पानी पीकर जाति पूछना = काम कर चूकने पर उसके औचित्य की विवेचना करना । पानी पी पीकर = निरतंर । अविराम । हर समय । लगातार । विशेष—इस मुहावरे का प्रयोग उस समय किया जाता है जब कोई घंटों तक लगातार किसी को गालियाँ देता या कोसता रहता है । भाव यह होता है कि उसने इतनी अधिक गालियाँ दी कि कई बार उसका गला सूख गया और उसे पानी पीकर उसे तर करना पड़ा । जैसे,—वह उन्हें पानी पी पीकर कोसता रहा । (किसी वस्तु पर) पानी फिरना या फिर जाना = नष्ट होना । चौपट हो जाना । मिट्टी में मिल जाना । बराबाद हो जाना । पानी फूँकना = मंत्र पढ़कर पानी पर फूँक मारना । पानी पढ़ना । पानी फूटना = (१) बाँध या मेड़ को तोड़कर पानी को निकालना । (२) पानी में उबाल आ जाना । पानी खौलने लगना । (किसी पर) पानी फेरना या फेर देना = ऐसा कुछ करना जिससे किया कराया उद्योग या परिश्रम विफल हो जाय या कोई बनी बात बिगड़ जाय । चौपट कर देना । मिट्टी कर देना । मटियामेट कर देना । मिटा देना । जैसे,—इस एक बात ने आज तक के हमारे सारे परिश्रम पर पानी फेर दिया । पानी बराना = (१) छोटी नालियाँ बनाकर और क्यारियाँ काटकर खेत को सींचना । (२) जिसमें नालियाँ तोड़कर पानी बह न जाय इसलिये इसकी रखवाली करना । पानी बाँधना = (१) जिस मार्ग से पानी बह रहा हो उसे बंद करना । पानी का बहाव रोकना । (२) बाँध बाँधकर या मेंड़ बनाकर पानी को ताल या खेत में एकत्र करके बाहर न जाने देना । पानी का रोकना या एकत्र करना । (३) जादू से बरसते या बहते हुए पानी की धार रोकना । जलस्तंभ करना । पानी बुझाना = लोहे, ईंट या सोने चाँदी आदि के टुक़ड़े को आग में लाल करके पानी में बुझाना । पानी बघारना ।

पानी पु ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पाणि] दे॰ 'पाणि' । उ॰—जयति जय बज्र तनु, दसन, नख, मुख विकट, चंड भुजंदंड, तरु सैल पानी ।—तुलसी ग्रं॰, पृ॰ ४६७ ।

पानी आलू संज्ञा पुं॰ [सं॰ पानीयालु] एक कद जो त्रिदोषनाशक है । पानीयालु ।