Drafts by Laxman Singh
Identity crisis and casteist grabbing of dignitaries in India
prerna anshu , 2023
short history of dalit theatre
Dalits in india are asserting on their caste identity By Pop songs of caste
देश में दलित गीतो... more Dalits in india are asserting on their caste identity By Pop songs of caste
देश में दलित गीतों की एक नई परंपरा शुरु हो गई है।ये दलित गीत दलितों के स्वाभिमान को बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं। दलित गायको एवं कलाकारों की एक नई पौध खड़ी हो गई है। यह सिलसिला पिछले लगभग 6 साल से जयादा दिखाई दे रहा है कि दलित गायक दलितों की समस्या एवं दलितों के महापुरुषों के विषय में गाना गा रहे हैं. गायक परमजीत पम्मा का कहना है कि उन्होंने २००९ में ऑस्ट्रिया में हुयी रविदासी सम्प्रदाय के संत रामानंद जी हत्या के बाद उन्होंने दलितों के विषय में गीत गाने शुरू किये। परमजीत पम्मा का कहना कि पहले जाट जाति को देहाती ,मूर्ख समझा जाता था लेकिन जाट गायको ने अपनी जाति का महिमामंडन करते हुए अनेक गीत गाये। अब समाज में यह जाट गीत स्वीकार्य हो गए हैं, एक दिन ऐसे ही दलित गीतों की स्वीकार्यता सर्वसमाज में होगी और दलितों के प्रति सोच बदलेगी। यह एक नई संस्कृति की शुरूआत है एक नए कल्चर को बढ़ाने की कोशिश है जैसा कि हम जानते हैं कि कोई भी संस्कृति हो वह सांस्कृतिक प्रतीको पर आधारित होती है दलितों ने भी अपने प्रति को अपने महापुरुषों को इन गीतों में आधार बनाया है. समाजशास्त्री अंतोनियो ग्राम्सी ने कहा था कि कैसी भी विचारधारा का संस्थानिक एवं कल्चरल आधार होता है, यह कल्चरल आइडियोलॉजी ही किसी बड़ी राजनैतिक शक्ति के आधारो में होती है। इसमे राजनीतिक प्रचार भाषण लोक साहित्य एवं प्रसिद्ध गीत सभी आते हैं। ग्राम्सी के अनुसार प्रसिद्ध गीत एवं मिथक भी एक प्रकार की बौद्धिक शक्ति होते हैं। ग्रामसी ने कहा है कि शासक वर्ग अपने कल्चरल प्रतीको के माध्यम से ही अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करता है। प्रभु सत्ता भौतिक एवं विचारधारा के कारकों का समुच्य होता है जिससे शासक वर्ग अपनी शक्ति को बनाए रखता है. प्रभु सत्ता भौतिक एवं विचारधारा के कारकों का समुच्य होता है जिससे शासक वर्ग अपनी शक्ति को बनाए रखता है। प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो पंजाब में दलितों की सबसे बड़ी जनसंख्या है पंजाब में लगभग 28 % दलित है. पंजाब में सबसे ज्यादा गीत जाट जाति के विषय में हैं। दलितों के गानों को जाटों का काउंटर कल्चर ही माना जाता है। ऐसे बहुत से गाने हैं जिनमें जाटों की वीरता का और उनके उच्च सामाजिक स्तर का बखान होता है. गायक परमजीत सिंह पम्मा कहते हैं कि हम दूसरी जातियों के गानों पर क्यों नाचे जब हम अपनी जाति के ऊपर बने हुए गानों पर भी नाच सकते हैं ,उन्हें सुन सकते हैं। पंजाबी की शीर्ष गायिका मिस पूजा भी दलित समाज से हैं. मिस पूजा ने भी रविदास समाज के ऊपर कई गाने गाएं हैं जिसमें से सबसे प्रसिद्ध है ';बेगमपुरा बसाना है ,सारे कर लो एका। बेगमपुरा एक ऐसी संकल्पना है जिसमें एक ऐसे स्थान की कल्पना है जहां कोई गम नहीं है बिना गम का जो स्थान है वहीं बेगमपुरा है. मिस पूजा के इस गाने के बोल हैं सारे कर लो एक का बेगमपुरा बसाना है. रविदास की बेगमपुरा की संकल्पना यूरोपियन यूटोपिया के समान है, बल्कि उससे भी जयादा विकसित है क्योंकि रविदास जी के वचन थे कि ''ऐसा चाहूं राज में जहां रहें सभी प्रसंन्न , मिले सभी को अन्न। इस प्रकार के गीतों का संवर्धन करने में डेरा सचखंड बल्ला की महत्वपूर्ण भूमिका है डेरा सचखंड बल्ला की स्थापना संत श्री श्रवण दासजी जी महाराज के द्वारा की गई थी. डेरा सचखंड बल्ला जालंधर जिले में स्थित है डेरा सचखंड बल्ला ने अनेक /cd रिलीज की है जो रविदासिया मिशन के बारे में है. डेरा सचखंड बल्ला से संबद्ध अनेक गायक हैं जो रविदासिया मिशन से जुड़े हुए गीत गाते हैं दलितों के गीतों की एक परंपरा से चल पड़ी है। आज up में, हरियाणा में अनेक दलित गायक हैं जो डॉ अंबेडकर ,गुरु रविदास के बारे में गाने गा रहे हैं दलित समाज के बारे में गाने गा रहे हैं/ अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं'. डेरा सचखंड बल्ला वालो ने गुरु रविदास की वाणी के ऊपर एक कार्यक्रम में बनाया था जिसका नाम था अमृतवाणी गुरु श्री गुरु रविदास की यह कार्यक्रम जालंधर दूरदर्शन पर 2003 प्रसारित हुआ था. एक दलित गायक रूपलाल धीर की दूसरी एल्बम रिलीज हुई है जिसका नाम है हममर।हम्मर एक आयातित अमेरिकन suv है तो वह उसी के ऊपर आधारित है कि दलित भी हम्मर जैसी गाड़ी रख सकता है। रूप लाल धीर का कहना है कि हमारा संगीत दलित समर्थक है ना कि किसी जाति के खिलाफ ,चमार शब्द का उल्लेख गुरुवाणी में मिलता है जब गुरुओं ने हमें सम्मान दिया तो हमें इस पर गर्व क्यों नहीं होना चाहिए। एक गाने के बोल हैं ''वाल्मीकियां दे मुंडे नहीं डर दे ,मजहबी सिख मुंडे नहीं डर -दे।अर्थ स्पस्ट है कि वाल्मीकि जाति के युवक बहादुर हैं। ss आजाद पंजाब में इस दलित pop के पायनियर है ss आजाद की पहली एलबम का नाम था
""अखि पूत चमारा दे"" इसका मतलब है चमारो के गर्वीले पुत्र , यह एल्बम सन 2010 में आई थी यह एल्बम कुछ लोगों के अनुसार पुत्र जट्टा दे के विरुद्ध आई एल्बम फाइटर् चमार सन 2011 में रिलीज हुई उस में कुछ ऐसे गीत है जैसे "" हाथ लेकर हथियार जब निकले चमार"" इस एल्बम की लगभग 20000 कॉपियां बिकी। रूप लाल धीर का कहना है कि रूप लाल धीर का कहना है कि एक गाना दिखाता है कि एक युवा दलित लड़का चंडीगढ़ में पड़ रहा है तब एक लडकी उसका ध्यान आकर्षण करने की चेष्टा करती है तो वह चमार लड़का कहता है पढ़ लिख कर मैं बनूंगा sp या dc या फिर किसी यूनिवर्सिटी का vc.मुझपे तुम्हारा आकर्षण नहीं चलेगा। .आइडेंटिटी की पहचान की इस लड़ाई में भेदभाव और संघर्ष हो रहा है ऑनलाइन यह बहुत ज्यादा दिखाई देता है youtube पर एक दूसरी जातियों के विरुद्ध नफरत फैलाने वाले वीडियो भी अपलोड किए जा रहे हैं। विदेशो में रहने वाले दलित इस दलित पॉप के सबसे बड़े संरक्षक हैं। गायक पम्मा सुनराह का कहना है कि इस चमार पॉप ने हमारे हौसले को बढ़ा दिया है यह जाट पॉप का रिएक्शन नहीं है यह दलितों की बात करता है। , उल्लेखनीय है कि पंजाबी के अनेक गायक जैसे हंसराज हंस , दलेर मेहँदी ,मीका , दलित हैं।
international conference india indonesia JNU. New Delhi, 2013
how indian classical dance affected Indonesian dance
Geography & you , 2019
article about Everest tourism and various factor related with ascent of Everest
Name –Laxman Singh
Supervisor Name- Dr. Mujib Alam
Department- MMAJ Academy of International St... more Name –Laxman Singh
Supervisor Name- Dr. Mujib Alam
Department- MMAJ Academy of International Studies, Jamia Millia Islamia
Topic of the study-Socio-Political Assertion through Art forms: A case study of Dalits in India and Nepal
Keywords :Dalit ,Dalit Art, Political Art, Nepal Art, Nepal Dalit
Abstract
Art is manifestation of ideas, in contemporary world Art form has become an instrument of social and political expression. In south Asian societies especially in India and Nepal Dalits are using Art forms as a emancipatory tool. Art forms like songs, theatre and visual imagery are being used for social and political assertion. For Dalits the meaning of Social assertion is denial of pre established birth based caste hierarchy, advocated by religious scriptures. Dalits have been creating parallel theological and spiritual movements based on cultural symbols. Dalits are also trying to image makeover as practicners of Arts. There are many internal and external factors influencing this new assertion. Dalit Panther movement was inspired by Black Panther movement of United States of America. Social assertion of Dalit began in medieval times when saint like kabir, Ravidas denied Brahminical notions of caste hierarchy and challenged monopoly of social elites on God and spiritual matters. Modern Dalit political assertion began with Ambedkar in India. His Demands of separate electoral and reservation in jobs paved paths of economic and social upward mobility of Dalits. Adi Dharma movement in different state gave a new identity to Dalits. Saint and social reformer Swami Achhutanand composed many plays as a propaganda tool to counter Brahminical hegemony. 2 Different social movements also influenced Dalits to unite and to fight for their rights. After independence Maharashtra became hub of dalit cultural production. Many prominent Dalit began to write their autobiographies followed by stories and poem and plays about dalit life. Bahujan Samaj Party, cultural wing identified many Dalit heroes like Jhalkaribai Kori, Uda Devi Pasi, Mahaviri Devi and propagated about them through songs, plays and imagery. This propaganda helped Bahujan Samaj party to get niche in different Dalit castes. After getting power in Uttar Pradesh , Bahujan samaj party, s leadership created many monuments dedicated to dalit heroes. Huge money was spend on these monuments. In Punjab , upwardly mobile Dalits have began dalit pop. Which mentions caste name. like putt chamara de. In Uttar Pradesh ,young and innovative dalit theatre director like Ramendra Chakrwarti ,Dev Kumar ,Shayam Kumar are producing though provoking plays based on Dalit themes. Many painters are regularly painting on dalit themes. Statues of Ambedkar are in vogue in Dalit households and colonies. Khela of Reshma and Chuharmal is very good example how Dalits are asserting for a dignified place in siety. In visual art many dalit painters are coming forward for their assertion. Savi Savarkar is flag bearer of this new radical Dalit brigade. His sketches convey an intense feeling. He is the first Indian painter wh through his work wanted to portray plight of Devdasis. In Nepal Dalits constitutes around 17% of total population. During monarchy Nepal was governed by Muluki ain .Nepalese constitution which was heavily influenced by Manu Smriti. After Maoist insurgency Dalits got empowered . After the democratization of 3 Nepal , Many NGO helped Dalit artists to create a new genre of art which revolves on dalit themes. Songs , paintings and Kachahari theatre [Nepali version of forum theatre] all are educating Dalits for their rights . Gandhrvas are asserting their identity by singing songs on new themes. Painters like Aruna Hingmang is creating a new language Dalit woman assertion. Her paintings depict Dalits life in a dynamic ways. Kachahari theatre is healing wounds of violence affected Dalits and paving a way for catharsis. Social assertion is also found in songs of Nepalese Musahars. Jagran media centre ,a NGO founded by Dalit journalists has produced a television serial on Dalit theme named DALAN. Jagran media centre has produced hundreds of songs about rights or Dalits ,about Dalit culture .they regularly air these songs through their community Radio in various districts of Nepal. Badi women ,who used to entertain aristocrats are now turned into sex workers, Many NGO’s working for them, educating their children and inspiring to indulge in meaningful art practices Art practices are changing image of Dalit. Emergence of Dalit aesthetics not only countered pre conceived notions of aesthetics but also gave a boost to Dalit identity. It’s interesting to note these art practices are somehow inspired by globalization but creating new identity.
Conference Presentations by Laxman Singh
Al Mustafa international university Qom iran, 2023
this article is about how Iran and Shia Islam culture affected India
Thesis Chapters by Laxman Singh
PhD. thesis , 2016
Nepalese Dalit poltiical art
Dalit political art of india and Nepal
Papers by Laxman Singh
history of sexual freedom movement in India
Review Of Politics Vol.XXVIII No. -1-4, 2010
According to a government estimate, the Dalit population in Nepal is about 17%. Dalits in Nepal h... more According to a government estimate, the Dalit population in Nepal is about 17%. Dalits in Nepal have been facing discrimination like in India and are at the last rung of the social ladder. Dalits in Nepal are very similar to those in India but their structure is slightly different. Nepal is mainly divided into three parts, Mountains , Hills and Terai. Mountains are those areas where there is snowfall in winter, after this the area with low altitude is called mountain. In these areas there are Kami [ blacksmith ] Sarki [ cobbler ] and Damai [ tailor and musician } goldsmith castes, after this the word Terai is used for the lowest area . There are three linguistic groups among the Dalits of Terai, Maithili , Bhojpuri and Awadhi. The social structure of the Dalits of Terai is similar to the neighboring country India. The Dalit castes of the Terai are the Tatma, Khatve , Dusadh , Musahar , Bataar , Dhobi , Chamaar , Dom and Badi , Gayane { Gandharva ].
G & you Geography and You , 2019
how people climb to Everest and what are the factors involved in this process
Journal of Exclusion Studies
The quota policy of the constitution has been an effective instrument for the lower caste student... more The quota policy of the constitution has been an effective instrument for the lower caste students to access higher education in India. The presence of a significant and growing population of marginalised student groups on college campuses have been perceived as a challenge to the historical hegemony of the higher castes. Few studies have reported that caste-based discrimination in higher education is evident across the institutions, specifically in elite institutions. However, it is an under-researched topic and this offers a unique opportunity to explore a new theoretical framework to study caste-based discrimination in the context of higher education. The racial microaggressions model offer a new definition, terminology and analytical tool to understand caste discrimination and how such discrimination results in low academic outcomes of lower caste students and also explains the tragedy of the student suicide that has received widespread media attention in recent times. The paper explores a microaggressions theory to illustrate implicit, subtle and complex forms of caste-based microaggressions that appear prevalent in university campuses in India. A taxonomic classification of caste-based discrimination indicates four types of microaggressions conveyed to lower caste students by the higher caste groups. The microaggressions framework facilitates new theoretical ground to comprehend caste-based invisible forms of discrimination. Further, it raises critical awareness of how discrimination operates in everyday institutional life, as well as the need for institutional interventions to stop caste-based microaggressions.
Caste-based discrimination has been a prominent feature of Indian society, although caste systems... more Caste-based discrimination has been a prominent feature of Indian society, although caste systems exist among Christians, Buddhists, and Muslims in India. However, its most egregious form is found in Hindu society because most Hindu scriptures promote a culture of caste discrimination. For instance, in the Valmiki Ramayan, Shambhuk, a Dalit sage, was killed by Rama solely for practicing tapasya (meditation), which was forbidden for Untouchables. Similarly, in the Mahabharata, Dronacharya refused to teach Eklavya, a Shudra, the art of archery, citing his low caste. When Eklavya continued to learn by creating a clay image of Dronacharya, the guru demanded Eklavya's thumb as a fee, crippling his ability to become a skilled archer and ensuring Arjun, his Brahmin student, remained the greatest.
The sexual revolution, also known as the sexual liberation, was a social movement that challenged... more The sexual revolution, also known as the sexual liberation, was a social movement that challenged traditional codes of behaviour related to sexuality and interpersonal relationships throughout the developed Western world from the 1960s to the 1970s. Sexual liberation included increased acceptance of sex outside of traditional heterosexual, monogamous relationships (primarily marriage) The normalization of contraception and the pill, public nudity, pornography, premarital sex , homosexuality, masturbation, alternative forms of sexuality, and the legalization of abortion all followed.
dalit political art in Nepal
Book Reviews by Laxman Singh
BOOK REVIEW "HISTORY OF MAGIC IN INDIA"
John Zubrzycki’s book traces the journey of what we know ... more BOOK REVIEW "HISTORY OF MAGIC IN INDIA"
John Zubrzycki’s book traces the journey of what we know as magic from the Harappan Civilisation to the current age.
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Drafts by Laxman Singh
देश में दलित गीतों की एक नई परंपरा शुरु हो गई है।ये दलित गीत दलितों के स्वाभिमान को बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं। दलित गायको एवं कलाकारों की एक नई पौध खड़ी हो गई है। यह सिलसिला पिछले लगभग 6 साल से जयादा दिखाई दे रहा है कि दलित गायक दलितों की समस्या एवं दलितों के महापुरुषों के विषय में गाना गा रहे हैं. गायक परमजीत पम्मा का कहना है कि उन्होंने २००९ में ऑस्ट्रिया में हुयी रविदासी सम्प्रदाय के संत रामानंद जी हत्या के बाद उन्होंने दलितों के विषय में गीत गाने शुरू किये। परमजीत पम्मा का कहना कि पहले जाट जाति को देहाती ,मूर्ख समझा जाता था लेकिन जाट गायको ने अपनी जाति का महिमामंडन करते हुए अनेक गीत गाये। अब समाज में यह जाट गीत स्वीकार्य हो गए हैं, एक दिन ऐसे ही दलित गीतों की स्वीकार्यता सर्वसमाज में होगी और दलितों के प्रति सोच बदलेगी। यह एक नई संस्कृति की शुरूआत है एक नए कल्चर को बढ़ाने की कोशिश है जैसा कि हम जानते हैं कि कोई भी संस्कृति हो वह सांस्कृतिक प्रतीको पर आधारित होती है दलितों ने भी अपने प्रति को अपने महापुरुषों को इन गीतों में आधार बनाया है. समाजशास्त्री अंतोनियो ग्राम्सी ने कहा था कि कैसी भी विचारधारा का संस्थानिक एवं कल्चरल आधार होता है, यह कल्चरल आइडियोलॉजी ही किसी बड़ी राजनैतिक शक्ति के आधारो में होती है। इसमे राजनीतिक प्रचार भाषण लोक साहित्य एवं प्रसिद्ध गीत सभी आते हैं। ग्राम्सी के अनुसार प्रसिद्ध गीत एवं मिथक भी एक प्रकार की बौद्धिक शक्ति होते हैं। ग्रामसी ने कहा है कि शासक वर्ग अपने कल्चरल प्रतीको के माध्यम से ही अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करता है। प्रभु सत्ता भौतिक एवं विचारधारा के कारकों का समुच्य होता है जिससे शासक वर्ग अपनी शक्ति को बनाए रखता है. प्रभु सत्ता भौतिक एवं विचारधारा के कारकों का समुच्य होता है जिससे शासक वर्ग अपनी शक्ति को बनाए रखता है। प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो पंजाब में दलितों की सबसे बड़ी जनसंख्या है पंजाब में लगभग 28 % दलित है. पंजाब में सबसे ज्यादा गीत जाट जाति के विषय में हैं। दलितों के गानों को जाटों का काउंटर कल्चर ही माना जाता है। ऐसे बहुत से गाने हैं जिनमें जाटों की वीरता का और उनके उच्च सामाजिक स्तर का बखान होता है. गायक परमजीत सिंह पम्मा कहते हैं कि हम दूसरी जातियों के गानों पर क्यों नाचे जब हम अपनी जाति के ऊपर बने हुए गानों पर भी नाच सकते हैं ,उन्हें सुन सकते हैं। पंजाबी की शीर्ष गायिका मिस पूजा भी दलित समाज से हैं. मिस पूजा ने भी रविदास समाज के ऊपर कई गाने गाएं हैं जिसमें से सबसे प्रसिद्ध है ';बेगमपुरा बसाना है ,सारे कर लो एका। बेगमपुरा एक ऐसी संकल्पना है जिसमें एक ऐसे स्थान की कल्पना है जहां कोई गम नहीं है बिना गम का जो स्थान है वहीं बेगमपुरा है. मिस पूजा के इस गाने के बोल हैं सारे कर लो एक का बेगमपुरा बसाना है. रविदास की बेगमपुरा की संकल्पना यूरोपियन यूटोपिया के समान है, बल्कि उससे भी जयादा विकसित है क्योंकि रविदास जी के वचन थे कि ''ऐसा चाहूं राज में जहां रहें सभी प्रसंन्न , मिले सभी को अन्न। इस प्रकार के गीतों का संवर्धन करने में डेरा सचखंड बल्ला की महत्वपूर्ण भूमिका है डेरा सचखंड बल्ला की स्थापना संत श्री श्रवण दासजी जी महाराज के द्वारा की गई थी. डेरा सचखंड बल्ला जालंधर जिले में स्थित है डेरा सचखंड बल्ला ने अनेक /cd रिलीज की है जो रविदासिया मिशन के बारे में है. डेरा सचखंड बल्ला से संबद्ध अनेक गायक हैं जो रविदासिया मिशन से जुड़े हुए गीत गाते हैं दलितों के गीतों की एक परंपरा से चल पड़ी है। आज up में, हरियाणा में अनेक दलित गायक हैं जो डॉ अंबेडकर ,गुरु रविदास के बारे में गाने गा रहे हैं दलित समाज के बारे में गाने गा रहे हैं/ अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं'. डेरा सचखंड बल्ला वालो ने गुरु रविदास की वाणी के ऊपर एक कार्यक्रम में बनाया था जिसका नाम था अमृतवाणी गुरु श्री गुरु रविदास की यह कार्यक्रम जालंधर दूरदर्शन पर 2003 प्रसारित हुआ था. एक दलित गायक रूपलाल धीर की दूसरी एल्बम रिलीज हुई है जिसका नाम है हममर।हम्मर एक आयातित अमेरिकन suv है तो वह उसी के ऊपर आधारित है कि दलित भी हम्मर जैसी गाड़ी रख सकता है। रूप लाल धीर का कहना है कि हमारा संगीत दलित समर्थक है ना कि किसी जाति के खिलाफ ,चमार शब्द का उल्लेख गुरुवाणी में मिलता है जब गुरुओं ने हमें सम्मान दिया तो हमें इस पर गर्व क्यों नहीं होना चाहिए। एक गाने के बोल हैं ''वाल्मीकियां दे मुंडे नहीं डर दे ,मजहबी सिख मुंडे नहीं डर -दे।अर्थ स्पस्ट है कि वाल्मीकि जाति के युवक बहादुर हैं। ss आजाद पंजाब में इस दलित pop के पायनियर है ss आजाद की पहली एलबम का नाम था
""अखि पूत चमारा दे"" इसका मतलब है चमारो के गर्वीले पुत्र , यह एल्बम सन 2010 में आई थी यह एल्बम कुछ लोगों के अनुसार पुत्र जट्टा दे के विरुद्ध आई एल्बम फाइटर् चमार सन 2011 में रिलीज हुई उस में कुछ ऐसे गीत है जैसे "" हाथ लेकर हथियार जब निकले चमार"" इस एल्बम की लगभग 20000 कॉपियां बिकी। रूप लाल धीर का कहना है कि रूप लाल धीर का कहना है कि एक गाना दिखाता है कि एक युवा दलित लड़का चंडीगढ़ में पड़ रहा है तब एक लडकी उसका ध्यान आकर्षण करने की चेष्टा करती है तो वह चमार लड़का कहता है पढ़ लिख कर मैं बनूंगा sp या dc या फिर किसी यूनिवर्सिटी का vc.मुझपे तुम्हारा आकर्षण नहीं चलेगा। .आइडेंटिटी की पहचान की इस लड़ाई में भेदभाव और संघर्ष हो रहा है ऑनलाइन यह बहुत ज्यादा दिखाई देता है youtube पर एक दूसरी जातियों के विरुद्ध नफरत फैलाने वाले वीडियो भी अपलोड किए जा रहे हैं। विदेशो में रहने वाले दलित इस दलित पॉप के सबसे बड़े संरक्षक हैं। गायक पम्मा सुनराह का कहना है कि इस चमार पॉप ने हमारे हौसले को बढ़ा दिया है यह जाट पॉप का रिएक्शन नहीं है यह दलितों की बात करता है। , उल्लेखनीय है कि पंजाबी के अनेक गायक जैसे हंसराज हंस , दलेर मेहँदी ,मीका , दलित हैं।
Supervisor Name- Dr. Mujib Alam
Department- MMAJ Academy of International Studies, Jamia Millia Islamia
Topic of the study-Socio-Political Assertion through Art forms: A case study of Dalits in India and Nepal
Keywords :Dalit ,Dalit Art, Political Art, Nepal Art, Nepal Dalit
Abstract
Art is manifestation of ideas, in contemporary world Art form has become an instrument of social and political expression. In south Asian societies especially in India and Nepal Dalits are using Art forms as a emancipatory tool. Art forms like songs, theatre and visual imagery are being used for social and political assertion. For Dalits the meaning of Social assertion is denial of pre established birth based caste hierarchy, advocated by religious scriptures. Dalits have been creating parallel theological and spiritual movements based on cultural symbols. Dalits are also trying to image makeover as practicners of Arts. There are many internal and external factors influencing this new assertion. Dalit Panther movement was inspired by Black Panther movement of United States of America. Social assertion of Dalit began in medieval times when saint like kabir, Ravidas denied Brahminical notions of caste hierarchy and challenged monopoly of social elites on God and spiritual matters. Modern Dalit political assertion began with Ambedkar in India. His Demands of separate electoral and reservation in jobs paved paths of economic and social upward mobility of Dalits. Adi Dharma movement in different state gave a new identity to Dalits. Saint and social reformer Swami Achhutanand composed many plays as a propaganda tool to counter Brahminical hegemony. 2 Different social movements also influenced Dalits to unite and to fight for their rights. After independence Maharashtra became hub of dalit cultural production. Many prominent Dalit began to write their autobiographies followed by stories and poem and plays about dalit life. Bahujan Samaj Party, cultural wing identified many Dalit heroes like Jhalkaribai Kori, Uda Devi Pasi, Mahaviri Devi and propagated about them through songs, plays and imagery. This propaganda helped Bahujan Samaj party to get niche in different Dalit castes. After getting power in Uttar Pradesh , Bahujan samaj party, s leadership created many monuments dedicated to dalit heroes. Huge money was spend on these monuments. In Punjab , upwardly mobile Dalits have began dalit pop. Which mentions caste name. like putt chamara de. In Uttar Pradesh ,young and innovative dalit theatre director like Ramendra Chakrwarti ,Dev Kumar ,Shayam Kumar are producing though provoking plays based on Dalit themes. Many painters are regularly painting on dalit themes. Statues of Ambedkar are in vogue in Dalit households and colonies. Khela of Reshma and Chuharmal is very good example how Dalits are asserting for a dignified place in siety. In visual art many dalit painters are coming forward for their assertion. Savi Savarkar is flag bearer of this new radical Dalit brigade. His sketches convey an intense feeling. He is the first Indian painter wh through his work wanted to portray plight of Devdasis. In Nepal Dalits constitutes around 17% of total population. During monarchy Nepal was governed by Muluki ain .Nepalese constitution which was heavily influenced by Manu Smriti. After Maoist insurgency Dalits got empowered . After the democratization of 3 Nepal , Many NGO helped Dalit artists to create a new genre of art which revolves on dalit themes. Songs , paintings and Kachahari theatre [Nepali version of forum theatre] all are educating Dalits for their rights . Gandhrvas are asserting their identity by singing songs on new themes. Painters like Aruna Hingmang is creating a new language Dalit woman assertion. Her paintings depict Dalits life in a dynamic ways. Kachahari theatre is healing wounds of violence affected Dalits and paving a way for catharsis. Social assertion is also found in songs of Nepalese Musahars. Jagran media centre ,a NGO founded by Dalit journalists has produced a television serial on Dalit theme named DALAN. Jagran media centre has produced hundreds of songs about rights or Dalits ,about Dalit culture .they regularly air these songs through their community Radio in various districts of Nepal. Badi women ,who used to entertain aristocrats are now turned into sex workers, Many NGO’s working for them, educating their children and inspiring to indulge in meaningful art practices Art practices are changing image of Dalit. Emergence of Dalit aesthetics not only countered pre conceived notions of aesthetics but also gave a boost to Dalit identity. It’s interesting to note these art practices are somehow inspired by globalization but creating new identity.
Conference Presentations by Laxman Singh
Thesis Chapters by Laxman Singh
Papers by Laxman Singh
Book Reviews by Laxman Singh
John Zubrzycki’s book traces the journey of what we know as magic from the Harappan Civilisation to the current age.
देश में दलित गीतों की एक नई परंपरा शुरु हो गई है।ये दलित गीत दलितों के स्वाभिमान को बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं। दलित गायको एवं कलाकारों की एक नई पौध खड़ी हो गई है। यह सिलसिला पिछले लगभग 6 साल से जयादा दिखाई दे रहा है कि दलित गायक दलितों की समस्या एवं दलितों के महापुरुषों के विषय में गाना गा रहे हैं. गायक परमजीत पम्मा का कहना है कि उन्होंने २००९ में ऑस्ट्रिया में हुयी रविदासी सम्प्रदाय के संत रामानंद जी हत्या के बाद उन्होंने दलितों के विषय में गीत गाने शुरू किये। परमजीत पम्मा का कहना कि पहले जाट जाति को देहाती ,मूर्ख समझा जाता था लेकिन जाट गायको ने अपनी जाति का महिमामंडन करते हुए अनेक गीत गाये। अब समाज में यह जाट गीत स्वीकार्य हो गए हैं, एक दिन ऐसे ही दलित गीतों की स्वीकार्यता सर्वसमाज में होगी और दलितों के प्रति सोच बदलेगी। यह एक नई संस्कृति की शुरूआत है एक नए कल्चर को बढ़ाने की कोशिश है जैसा कि हम जानते हैं कि कोई भी संस्कृति हो वह सांस्कृतिक प्रतीको पर आधारित होती है दलितों ने भी अपने प्रति को अपने महापुरुषों को इन गीतों में आधार बनाया है. समाजशास्त्री अंतोनियो ग्राम्सी ने कहा था कि कैसी भी विचारधारा का संस्थानिक एवं कल्चरल आधार होता है, यह कल्चरल आइडियोलॉजी ही किसी बड़ी राजनैतिक शक्ति के आधारो में होती है। इसमे राजनीतिक प्रचार भाषण लोक साहित्य एवं प्रसिद्ध गीत सभी आते हैं। ग्राम्सी के अनुसार प्रसिद्ध गीत एवं मिथक भी एक प्रकार की बौद्धिक शक्ति होते हैं। ग्रामसी ने कहा है कि शासक वर्ग अपने कल्चरल प्रतीको के माध्यम से ही अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करता है। प्रभु सत्ता भौतिक एवं विचारधारा के कारकों का समुच्य होता है जिससे शासक वर्ग अपनी शक्ति को बनाए रखता है. प्रभु सत्ता भौतिक एवं विचारधारा के कारकों का समुच्य होता है जिससे शासक वर्ग अपनी शक्ति को बनाए रखता है। प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो पंजाब में दलितों की सबसे बड़ी जनसंख्या है पंजाब में लगभग 28 % दलित है. पंजाब में सबसे ज्यादा गीत जाट जाति के विषय में हैं। दलितों के गानों को जाटों का काउंटर कल्चर ही माना जाता है। ऐसे बहुत से गाने हैं जिनमें जाटों की वीरता का और उनके उच्च सामाजिक स्तर का बखान होता है. गायक परमजीत सिंह पम्मा कहते हैं कि हम दूसरी जातियों के गानों पर क्यों नाचे जब हम अपनी जाति के ऊपर बने हुए गानों पर भी नाच सकते हैं ,उन्हें सुन सकते हैं। पंजाबी की शीर्ष गायिका मिस पूजा भी दलित समाज से हैं. मिस पूजा ने भी रविदास समाज के ऊपर कई गाने गाएं हैं जिसमें से सबसे प्रसिद्ध है ';बेगमपुरा बसाना है ,सारे कर लो एका। बेगमपुरा एक ऐसी संकल्पना है जिसमें एक ऐसे स्थान की कल्पना है जहां कोई गम नहीं है बिना गम का जो स्थान है वहीं बेगमपुरा है. मिस पूजा के इस गाने के बोल हैं सारे कर लो एक का बेगमपुरा बसाना है. रविदास की बेगमपुरा की संकल्पना यूरोपियन यूटोपिया के समान है, बल्कि उससे भी जयादा विकसित है क्योंकि रविदास जी के वचन थे कि ''ऐसा चाहूं राज में जहां रहें सभी प्रसंन्न , मिले सभी को अन्न। इस प्रकार के गीतों का संवर्धन करने में डेरा सचखंड बल्ला की महत्वपूर्ण भूमिका है डेरा सचखंड बल्ला की स्थापना संत श्री श्रवण दासजी जी महाराज के द्वारा की गई थी. डेरा सचखंड बल्ला जालंधर जिले में स्थित है डेरा सचखंड बल्ला ने अनेक /cd रिलीज की है जो रविदासिया मिशन के बारे में है. डेरा सचखंड बल्ला से संबद्ध अनेक गायक हैं जो रविदासिया मिशन से जुड़े हुए गीत गाते हैं दलितों के गीतों की एक परंपरा से चल पड़ी है। आज up में, हरियाणा में अनेक दलित गायक हैं जो डॉ अंबेडकर ,गुरु रविदास के बारे में गाने गा रहे हैं दलित समाज के बारे में गाने गा रहे हैं/ अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं'. डेरा सचखंड बल्ला वालो ने गुरु रविदास की वाणी के ऊपर एक कार्यक्रम में बनाया था जिसका नाम था अमृतवाणी गुरु श्री गुरु रविदास की यह कार्यक्रम जालंधर दूरदर्शन पर 2003 प्रसारित हुआ था. एक दलित गायक रूपलाल धीर की दूसरी एल्बम रिलीज हुई है जिसका नाम है हममर।हम्मर एक आयातित अमेरिकन suv है तो वह उसी के ऊपर आधारित है कि दलित भी हम्मर जैसी गाड़ी रख सकता है। रूप लाल धीर का कहना है कि हमारा संगीत दलित समर्थक है ना कि किसी जाति के खिलाफ ,चमार शब्द का उल्लेख गुरुवाणी में मिलता है जब गुरुओं ने हमें सम्मान दिया तो हमें इस पर गर्व क्यों नहीं होना चाहिए। एक गाने के बोल हैं ''वाल्मीकियां दे मुंडे नहीं डर दे ,मजहबी सिख मुंडे नहीं डर -दे।अर्थ स्पस्ट है कि वाल्मीकि जाति के युवक बहादुर हैं। ss आजाद पंजाब में इस दलित pop के पायनियर है ss आजाद की पहली एलबम का नाम था
""अखि पूत चमारा दे"" इसका मतलब है चमारो के गर्वीले पुत्र , यह एल्बम सन 2010 में आई थी यह एल्बम कुछ लोगों के अनुसार पुत्र जट्टा दे के विरुद्ध आई एल्बम फाइटर् चमार सन 2011 में रिलीज हुई उस में कुछ ऐसे गीत है जैसे "" हाथ लेकर हथियार जब निकले चमार"" इस एल्बम की लगभग 20000 कॉपियां बिकी। रूप लाल धीर का कहना है कि रूप लाल धीर का कहना है कि एक गाना दिखाता है कि एक युवा दलित लड़का चंडीगढ़ में पड़ रहा है तब एक लडकी उसका ध्यान आकर्षण करने की चेष्टा करती है तो वह चमार लड़का कहता है पढ़ लिख कर मैं बनूंगा sp या dc या फिर किसी यूनिवर्सिटी का vc.मुझपे तुम्हारा आकर्षण नहीं चलेगा। .आइडेंटिटी की पहचान की इस लड़ाई में भेदभाव और संघर्ष हो रहा है ऑनलाइन यह बहुत ज्यादा दिखाई देता है youtube पर एक दूसरी जातियों के विरुद्ध नफरत फैलाने वाले वीडियो भी अपलोड किए जा रहे हैं। विदेशो में रहने वाले दलित इस दलित पॉप के सबसे बड़े संरक्षक हैं। गायक पम्मा सुनराह का कहना है कि इस चमार पॉप ने हमारे हौसले को बढ़ा दिया है यह जाट पॉप का रिएक्शन नहीं है यह दलितों की बात करता है। , उल्लेखनीय है कि पंजाबी के अनेक गायक जैसे हंसराज हंस , दलेर मेहँदी ,मीका , दलित हैं।
Supervisor Name- Dr. Mujib Alam
Department- MMAJ Academy of International Studies, Jamia Millia Islamia
Topic of the study-Socio-Political Assertion through Art forms: A case study of Dalits in India and Nepal
Keywords :Dalit ,Dalit Art, Political Art, Nepal Art, Nepal Dalit
Abstract
Art is manifestation of ideas, in contemporary world Art form has become an instrument of social and political expression. In south Asian societies especially in India and Nepal Dalits are using Art forms as a emancipatory tool. Art forms like songs, theatre and visual imagery are being used for social and political assertion. For Dalits the meaning of Social assertion is denial of pre established birth based caste hierarchy, advocated by religious scriptures. Dalits have been creating parallel theological and spiritual movements based on cultural symbols. Dalits are also trying to image makeover as practicners of Arts. There are many internal and external factors influencing this new assertion. Dalit Panther movement was inspired by Black Panther movement of United States of America. Social assertion of Dalit began in medieval times when saint like kabir, Ravidas denied Brahminical notions of caste hierarchy and challenged monopoly of social elites on God and spiritual matters. Modern Dalit political assertion began with Ambedkar in India. His Demands of separate electoral and reservation in jobs paved paths of economic and social upward mobility of Dalits. Adi Dharma movement in different state gave a new identity to Dalits. Saint and social reformer Swami Achhutanand composed many plays as a propaganda tool to counter Brahminical hegemony. 2 Different social movements also influenced Dalits to unite and to fight for their rights. After independence Maharashtra became hub of dalit cultural production. Many prominent Dalit began to write their autobiographies followed by stories and poem and plays about dalit life. Bahujan Samaj Party, cultural wing identified many Dalit heroes like Jhalkaribai Kori, Uda Devi Pasi, Mahaviri Devi and propagated about them through songs, plays and imagery. This propaganda helped Bahujan Samaj party to get niche in different Dalit castes. After getting power in Uttar Pradesh , Bahujan samaj party, s leadership created many monuments dedicated to dalit heroes. Huge money was spend on these monuments. In Punjab , upwardly mobile Dalits have began dalit pop. Which mentions caste name. like putt chamara de. In Uttar Pradesh ,young and innovative dalit theatre director like Ramendra Chakrwarti ,Dev Kumar ,Shayam Kumar are producing though provoking plays based on Dalit themes. Many painters are regularly painting on dalit themes. Statues of Ambedkar are in vogue in Dalit households and colonies. Khela of Reshma and Chuharmal is very good example how Dalits are asserting for a dignified place in siety. In visual art many dalit painters are coming forward for their assertion. Savi Savarkar is flag bearer of this new radical Dalit brigade. His sketches convey an intense feeling. He is the first Indian painter wh through his work wanted to portray plight of Devdasis. In Nepal Dalits constitutes around 17% of total population. During monarchy Nepal was governed by Muluki ain .Nepalese constitution which was heavily influenced by Manu Smriti. After Maoist insurgency Dalits got empowered . After the democratization of 3 Nepal , Many NGO helped Dalit artists to create a new genre of art which revolves on dalit themes. Songs , paintings and Kachahari theatre [Nepali version of forum theatre] all are educating Dalits for their rights . Gandhrvas are asserting their identity by singing songs on new themes. Painters like Aruna Hingmang is creating a new language Dalit woman assertion. Her paintings depict Dalits life in a dynamic ways. Kachahari theatre is healing wounds of violence affected Dalits and paving a way for catharsis. Social assertion is also found in songs of Nepalese Musahars. Jagran media centre ,a NGO founded by Dalit journalists has produced a television serial on Dalit theme named DALAN. Jagran media centre has produced hundreds of songs about rights or Dalits ,about Dalit culture .they regularly air these songs through their community Radio in various districts of Nepal. Badi women ,who used to entertain aristocrats are now turned into sex workers, Many NGO’s working for them, educating their children and inspiring to indulge in meaningful art practices Art practices are changing image of Dalit. Emergence of Dalit aesthetics not only countered pre conceived notions of aesthetics but also gave a boost to Dalit identity. It’s interesting to note these art practices are somehow inspired by globalization but creating new identity.
John Zubrzycki’s book traces the journey of what we know as magic from the Harappan Civilisation to the current age.
this is machine translation so ignore mistakes