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टाइम बॉल

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टाइम बॉल या कालगेंद
Time Ball
यूएसएनो
अमरीकी नौवाहन वेधशाला की कालगेंद

टिइम बाॅल या कालगेंद एक, अब नाकारा हो चुके समय-संकेतक युक्ती का नाम था, जिसे पहले अपतटीय जहाज़ों एवं नाविकों को सटीक समय का संकेत कराने के लिये इस्तमाल किया जाता था ताकी बंदर्गाह या सफ़र पर जा रहे अन्य जहाज़ अपने समुद्री कालमापियों को सफ़र पर जाने से पहले सटीक रूप से निर्धारित कर सकें। १९वीं सदी में इसका इस्तमाल चरम पर था। इलेक्ट्रानिक समय संकेतों का आविश्कार एवं प्रचनल के साथ ही इस गतकालीन युक्ती का उपयोग धीरे-धीरे खनम हो गया, परन्तु कुछ जगहों पर कसे अभी भी ऐतिहासिक पर्यटक आकर्शणों के तौर पर रखा गया है। इस्का आविश्कार सन १८२९ में राॅबर्ट वाॅशोप नामक एक अंग्रेज़ ऐडमिरल द्वारा किया गया था।[1]

समय मापन के लिये अती आवश्यक इस यंत्र को इसके आविश्कारक राॅबर्ट वाॅशोप ने अंग्रेज़ी में टाइम बाॅल(अंग्रेज़ी: Timeball) का नाम दिया था। यह शब्द दो अंग्रेज़ी शब्दों से बना है- टाइम(Time) अर्थात् समय और बाॅल(Ball) अर्थात् गेंद, जिसका अर्थ होता है समय/काल की गेंद। इसे हिंदी में कालगेंद या समय गेंद के रूप में अनुवादित किया जा सकता है।

बाॅस्टन टाइम बाॅल(१८८१ की तसवीर)

समुद्र में सटीक नौवाहन के लिये देशान्तरों की सटीक जानकारी अत्यावश्यक है और इस्के लिये ज़रूरी है समय की सही जानकारी होना। समुद्री पोतों में समय निर्धारण के लिये समुद्री कालमापियों का उपयोग किया जाता है। सफ़र से पहले इसे ठीक से निर्धिरित करन ज़रूरी होता था। इसी कार्य के लिये राॅबर्ट वाॅशोप ने टाइम बाॅल का आविश्कार किया था। विष्व के पहले टाइम बाॅल को पोर्ट्समाउथ, इंग्लैंड में १८२९ में आविश्कारक राॅबर्ट वाॅशोप द्वारा लगाया गया था, जो अपने काम में काफ़ी रफ़ल रहा। इसके बाद धीरे-धीरे यूको और वश्व के अन्य बंदरगाहों पर भी इसे लगा दिया गया। इसी सिलसिले में एक टाइम बाॅल को ग्रीनविच की शाही वेधशाला में भी शोधकर्ता जाॅन पौन्ड द्वारा लगाया गया, जो आज भी, हर रोज़, एक बजे अपने मानक स्थान से नीचे गिरती है। वाॅशोप ने सफलतापूर्वक, फ़्रान्सिसी और अमेरिकी राजदूत के समक्ष, इस योजना को प्रस्तुत किया और इसी के साथ अमरीका की पहली ताइम बाॅल को वाॅशिंग्टन डी॰सी॰ की अमरीकी नौवाहन वेधशाला में स्थापित किया गया। कालगेंदों को आम तौर पर दोपहर १ बजे गिराया जाता था(हालांकी अमरीका में गिराने का समय १२ बजे हुआ करता था)। कालगेंद स्टेशनें सूर्य और सितारों की स्थितीनुसार अपनी घड़ियाँ निर्धारित किया करते थे नहीं तो उन्हें किसी अतिसटीक घड़ी का सहारा लेना पड़ता था जिसे हाथ से बार-बार वेधशालीय समय पे निरधारीत किया जाता था। अतः स्टेशनों को आम तौर पर किसी वेधशाला में ही रखा जाता था। १८५० में टेलिग्राफ़ के प्रचलन से इस स्थिती में सुधार आया और दूरस्त समय निर्धारण संभव हो सका। इस से कालगेंद स्टेशनों को वेधशाला से दूर, तट के पास स्थापित किया जाने लगा और सटीक समय की जानकारी तार द्वारा भेजी जाने लगी। १९२० के दशक में, रेडियो सिगनलिंग(आकाशवाणी-संकेतन) की शुरुआत के साथ ही कालगेंद अप्रचलित होने लगा, और धीरे धीरे सारी जगहों से हटा दिया गया।

कार्यप्रक्रिया

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सामान्य ज्ञाय के लिये, हर कालगेंद में एक बड़ा गोलाकार गेंद(टाइम बाॅल) होती थी, जिसे एक राॅड पर ऊपर से नीचे तक हिलाया जा सकता था। हर कालगेंद स्टेशन में गेंद गिराने का एक पूर्वनिर्धारित समय हुआ करता था(अधिकतर देशों में दोपहर १ बजे) जिसकी जानकारी हर नाविक को होती थी। इसी पूर्वनिर्धारित समय पर कृयानुसार प्रतीदिन बाॅल को गिराया जाता था। गिराने से करीब 5 मिनट पहले जहाज़ों को सचेत करने के लिये गेंद को आधे रासते तक ऊपर चढ़ा दिया जाता था। फिर २-३ मिनट पहले उसे राॅड पर पूरी तरह ऊपर उठाकर फिर उसी पूर्वनिर्धारित समय पर नीचे गिराया जाता था और गेंद का गिरना शुरु होते ही समय दर्ज कर लिया जाता था।

इसी प्रक्रिया से प्रेरित एक टाइम बाॅल को प्रती नव वर्ष की रात(३१ दिसम्बर) को न्यू याॅर्क के टाइम्स् स्क्वैर में १२ बजने के समय उठाया जाता है।

विश्व के मौजूदा बचे टाइम बाॅल

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दुनिया में अब करीब ६० ऐसी जगहें हैं जहां पर कालगेंद अभी भी मौजूद है, हालांकी अधिकतर कार्यशील नहीं हैं। कुछ प्रसिद्ध स्थल हैं:

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. Aubin, David (2010). The Heavens on Earth: Observatories and Astronomy in Nineteenth-Century Science and Culture. Durham, N.C.: Duke University Press. पृ॰ 164. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-8223-4640-1.

बाहरी कड़ियाँ

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