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प्रशिक्षुता

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प्रशिक्षुता या इन्टर्नशिप शब्द प्रायः नया व्यवसाय या नौकरी आरंभ करने वाले उन महाविद्यालयी छात्रों, विश्वविद्यालय के छात्रों या युवकों के लिये प्रयोग किया जाता है, जो इस क्षेत्र में नये उतरे होते हैं और प्रशिक्षण के साथ ही व्यवसाय आरंभ करते हैं। इन्हें हिन्दी में प्रशिक्षु भी कहा जाता है। इंटर्न एक अंग्रेज़ी शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है कैद।

इस क्रिया को इंटर्नशिप कहा जाता है। यह उनके लिये एक ऐसा अवसर होता है, जो उनके लिए आकर्षक व्यवसाय की राह को सुगम बनाता है। इस काल के दौरान उन्हें व्यावसायिक कार्यों का व्यावहारिक अनुभव मिलता है, जो वे अब तक मात्र अपनी पाठय़पुस्तकों में ही पढ़े हुए होते हैं।[1] अधिकांश नियोक्ताओं का विचार होता है कि मात्र कॉलिजों में पढ़ायी गयी पाठय़पुस्तकों की सामग्री काम के लिए उस व्यावहारिक दक्षता को उत्पन्न करने में पूरी तरह सक्षम नहीं रहती, जो किसी प्रत्याशी के लिए कार्यस्थल पर आवश्यक होती है। उन्हें व्यवहारिक ज्ञान के साथ ही विषय की बारीकियों को समझने का अवसर भी मिलता है। इंटर्नशिप की अवधि में सीखी गई मूलभूत उनके भविष्य निर्माण में सहायक सिध्द होती हैं।[1] इसी कारण से इंटर्नशिप व्यावसायिक क्षेत्र के नवागन्तुकों के लिये अत्यंत उपयोगी सिद्ध होती है। इस अवधि में इन्टर्न गणों को अपने समय का अधिक से अधिक भाग सीखने में लगाना चाहिये। इन्टर्नशिप की अवधि ६-१२ सप्ताह या ६ माह से एक वर्ष तक हो सकती है।

कॉलिजों में पढ़ायी गई पाठय़पुस्तकें और सत्र के गृहकार्य (टर्म एसाइनमेंट) छात्रों को वास्तविक कार्यस्थिति का अनुभव देने में अक्षम रहते हैं। इनकी कमी ही इन्टर्नशिप द्वारा पूरी की जाती है। किसी संगठन में इंटर्न के रूप में यह सीखने को मिलता है कि अन्य सहकर्मी किस तरह विभिन्न उत्पादों पर काम करते हैं। इस तरह कक्षा में सीखे गए सिद्धांतों को व्यवहार में लागू करने का अवसर मिलता है। व्यवसाय की राह में पहले चरण के रूप में इंटर्नशिप कार्यक्रम के तहत व्यावसायिक संबंध स्थापित करने में भी उन्हें काफी मदद मिलती है। व्यवसाय के बाद के वर्षो में यह बात काफी लाभदायक सिद्ध होती है।[2] साथ ही अन्य साथी इन्टर्न भी साथ में अपने अनुभव बांटते हैं। इंटर्नशिप स्वयं की कार्य पद्धति, मजबूत और कमजोर पक्ष को क्षेत्र विशेष में पूर्णकालिक व्यवसाय निर्माण से पूर्व सीखने और समझने का स्वर्णिम अवसर होता है। कार्यस्थल पर काम करके इन्टर्न यह समझ पाते हैं कि वे किस क्षेत्र में बेहतर काम कर सकते हैं और बाद में उन्हें किस काम के लिए आवेदन करना चाहिए।

कई ऐसी कंपनियां होती हैं जो नवागन्तुकों को अपने यहां इन्टर्न रूप में रखती हैं और उन्हें प्रशिक्षण देती हैं। इंटर्नशिप किये हुए लोगों को उस कंपनी में अन्य अनानुभवी प्रत्याशियों पर वरीयता दी जाती है। प्रायः इंटर्न्स इस आशा के साथ किसी कंपनी में जाते हैं कि संभवतः वहीं उनकी पहली नौकरी का आरंभ हो जाए। यह रास्ता इंटर्नशिप की अवधि में उनके प्रदर्शन पर निर्भर करता है।[3]

एक नियोक्ता[4] के अनुसार इन्तर्न्स के लिए तीन बातों का ध्यान रखना अत्यावश्यक होता हैं। ये हैं - रवैया (एटिट्यूड), प्रवीणता (स्किल्स) और बर्ताव। उनके अनुसार, कंपनी में पहले से कार्यरत अन्य कर्मचारियों के मुकाबले स्वयं को बेहतर सिद्ध करने के लिए इंटर्न को सकारात्मक रवैया दर्शाना चाहिए।[1]

सन्दर्भ

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  1. इंटर्नशिप Archived 2019-01-12 at the वेबैक मशीन। करियर भास्कर। ३ जून २०१० सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "करियर भास्कर" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  2. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; हिन्दुस्तान नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  3. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; नवभारत नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  4. बिहेवियरल ट्रेनिंग कंपनी के सह-संस्थापक व निदेशक सौरभ सकलानी

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