मौर्यवंश के पतन का कारण
मौर्य साम्राज्य का पतन
[संपादित करें]मौर्य सम्राट की मृत्यु (२३७-२६ ई. पू.) के उपरान्त लगभग दो सदियों (३२२ - १८४ई.पू.) से चले आ रहे शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य का विघटन होने लगा।
अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी। इससे मौर्य साम्राज्य समाप्त हो गया।
पतन का क्रम
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पतन के कारण
[संपादित करें]- अयोग्य एवं निर्बल उत्तराधिकारी,
- प्रशासन का अत्यधिक केन्द्रीयकरण,
- राष्ट्रीय चेतना का अभाव,
- आर्थिक एवं सांस्कृतिक असमानताएँ,
- प्रान्तीय शासकों के अत्याचार,
- करों की अधिकता,
- अशोक की धर्मनिरपेक्ष नीति
- अमात्यों के अत्याचार।
विभिन्न इतिहासकारों ने मौर्य वंश का पतन के लिए भिन्न-भिन्न कारणों का उल्लेख किया है[कृपया उद्धरण जोड़ें]-
- हेमचन्द्र राय चौधरी - सम्राट अशोक की अहिंसक एवं शान्तिप्रिय नीति।
- डी डी कौशाम्बी - आर्थिक संकटग्रस्त व्यवस्था का होना।
- डी.एन. झा - निर्बल उत्तराधिकारी
- रोमिला थापर - मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए केन्द्रीय शासन अधिकारी तन्त्र का अव्यवस्था एवं अप्रशिक्षित होना।
अयोग्य तथा निर्बल उत्तराधिकारी
[संपादित करें]अशोक ने पहले ही अपने भाईयो को मार दिया था इसीलिए उसे ऐसे लोगो को अपने राज्यों सामन्त बनना पड़ा जो मौर्यवंशी नहीं थे परिणाम स्वरुप अशोक की मृत्यु के बाद विद्रोह करके स्वतंत्र हो गए और अशोक ने बौध्य धर्म को अपनाने के बाद अपने दिगविजय नीति (चारो दिशाओं में विजय) को धम्मविजय नीति में बदल दिया जिसके परिणाम स्वरुप मौर्यवंशी शासकों ने अपना कभी भी राज्य विस्तार करने की कोशिश नहीं की |
राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि कश्मीर में जालौक ने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिया । तारानाथ के विवरण से पता चलता है कि वीरसेन ने गन्धार प्रदेश में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना कर ली । कालीदास के मालविकाग्निमित्र के अनुसार विदर्भ भी एक स्वतन्त्र राज्य हो गया था । परवर्ती मौर्य शासकों में कोई भी इतना सक्षम नहीं था कि वह समस्त राज्यों को एकछत्र शासन-व्यवस्था के अन्तर्गत संगठित करता । विभाजन की इस स्थिति में यवनों का सामना संगठित रूप से नहीं हो सका और साम्राज्य का पतन अवश्यम्भावी था ।
शासन का अतिकेन्द्रीकरण
[संपादित करें]मौर्य प्रशासन में सभी महत्वपूर्ण कार्य राजा के नियंत्रण में होते थे । उसे वरिष्ठ पदाधिकारियों की नियुक्ति का सर्वोच्च अधिकार प्राप्त था ।ऐसे में अशोक की मृत्यु के पश्चात् उसके निर्बल उत्तराधिकारियों के काल में केन्द्रीय नियंत्रण से सही से कार्य नहीं हो सका और राजकीय व्यवस्था चरमरा गई |
आर्थिक संकट
[संपादित करें]अशोक ने बौध्य धर्म अपनाने के बाद 84 हजार स्तूप बनवाकर राजकोष खली कर दिया और इन स्तूपों को बनवाने के लिए प्रजा पर कर बढ़ा दिया गया और इन स्तूपों की देखभाल के खर्च का बोझ सामान्य प्रजा पर पड़ा |
अशोक की धर्मनिरपेक्ष नीति
[संपादित करें]अशोक की अहिंसक नीतियों के कारण मौर्यवंश का सामराज्य खंडित हो गया और उसे रोकने के लिए वो कुछ कर भी नहीं पाए -उदाहरण के तौर पर आप कश्मीर के सामन्त जलोक को ले सकते है जिसने अशोक के बौध्य बनने के कारण कश्मीर को अलग राष्ट्र घोषित कर दिया क्युकी वो शैव धर्म (जो केवल शिव को अदि -अनन्त परमेश्वर मानते हो ) का अनुयायी था और बौध्य धर्म को पसंद नहीं करता था | ये बात भी बिलकुल सही है की अगर आचार्य चाणक्य की जगह कोई बौध्य भिक्षु चन्द्रगुप्त मौर्य का गुरु होता तो वो उनको अहिंसा का मार्ग बताता और मौर्यवंश की स्थापना भी ना हो पाती ।
बृहद्रथ की मृत्यु
[संपादित करें]जब बृहद्रथ को उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने सेना के परेड में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया था जहां उन्होंने बृहद्रथ के ऊपर तलवार से वार किया और उनकी हत्या कर दी।