Zameen Saakin Hai (Hindi)
Zameen Saakin Hai (Hindi)
Zameen Saakin Hai (Hindi)
jamaIna
saaikna hE !
SAB YA
VIRTUAL PUBLICATION
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saaikna hE !
SAB YA
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ैज़मीन साकिन ह
بسم اهلل الرحمن الرحیم ـــ نحمدہ و نصىل عىل رسوله الکریم ـ
मसअला 31 : अज़ मोती बाज़ार लाहौर, मसअला मौलवी
_ हाकिम अली साहहब, 14 जुमादल ऊला 1339 हहजरी
یا سیدی اعىل حضرت سلمکم اهلل تعایل ـــ السالم علیکم و رحمة اهلل و
ك الس ٰم ٰو ِت و برکاته ـــ اما بعد ھذا من تفسی جاللنی (اِن ٰ
الل ُی ْم ِس ُ
ْاْل ْرض ا ْن ت ُز ْوْل )ای یمنعھما من الزوال و ایضا (او ل ْم تک ُْونُ ْوا
ِن )زائدۃ (زوال )عنھا ِن ق ْب ُل )یف الدنیا (ما لک ُْم م ْ
اقْس ْم ُت ْم )حلفتم (م ْ
لِت ُز ْول ِم ْن ُه ( ایل اْلخرۃ و ایضا (و اِ ْن )ما (کان مک ُْر ُھ ْم )و ان عظم
الْ ِجبا ُل )المعن ْل یعبأ به و ْل یضر اْل انفسھم و المراد بالجبال ھنا
قیل حقیقتا و قیل شرائع اْلسالم المشبھة بھا یف القراء و الثبات و یف
قراءۃ بفتح ْلم لتزول و رفع الفعل فان مخففة و المراد (عہ )تعظیم
مکرھم و قیل المراد بالمکر کفرھم و یناسبه عىل الثانیة تکاد
السم ٰوت یتفطرن منه و تنشق اْلرض و تخر الجبال ھدا وعىل اْلول ما
ٰ
قرئ و ما کان ـ و سردار من دامت برکاتکم و ا ین است از تفسی
ك الس ٰم ٰو ِت و ْاْل ْرض) حسین (اِن ٰ
الل )بدرستیکہ خداےئ تعایل (یُ ْم ِس ُ
نگاہ یم دارد آسمانہا و زمنی را (ا ْن ت ُز ْوْل )براےئ آنکہ زائل نہ شوند
از اما کن خود چہ ممکن را در حال بقا ناچار است از نگاہ دارندہ آوردہ
اند کہ چوں یہود و نصاری عزیر و عییس را بفرزندی حق سبحنہ
1
ैज़मीन साकिन ह
نسبت کردند آسمان و زمنی نزدیک بآں رسید کہ شگافتہ گردد حق
تعایل فرمود کہ من بقدرت نگاہ یم دارم ایشاں را تا زوال نیابند یعن
از جاےئ خود نروند ایضا (او ل ْم تک ُْونُ ْوا )در جواب ایشاں گویند
فرشتگان آیا نبودید شما کہ از روےئ مبالغہ (اقْس ْم ُت ْم م ْ
ِن ق ْب ُل)
سوگند یم خوردید پیش ازیں در دنیا کہ شما پایندہ و خوابیدہ بودید
ِن زوال )نباشد شمارا ہیچ زوا لے مراد آنست کہ یم گفتند
(ما لک ُْم م ْ
کہ مادر دنیا خواہیم بود و بسراےئ دیگر نقل نخواہیم نمود و ایضا
(و اِ ْن کان مک ُْر ُھ ْم )و بدرستیکہ بود مکر ایشاں در سخیت و ہول
ساختہ پرداختہ (لِت ُز ْول )تا از جاےئ برود ( ِم ْن ُه الْ ِجبا ُل )زاں مکر کوہ
ہا ـ
महबूब व मुहहब ए फ़िीर
ایدکم اهلل تعایل یف کل حال ـ
3
ज़मीन साकिन है
अपने मदार में और सूरज िी हमराही में इमसाि िरदा शुदा है और
जाखज़बा और रफ़्तार क्या है ससफ़़ अल्लाह पाि िे इमसाि िा एि
ज़ुहूर है और िु छ नहीं, अब चाहें तो जाखज़बा और रफ़्तार दोनों िो
मादम ू िर दें और हर चीज़ िो उसिे हय्यिज़ में साकिन फ़रमा दें,
उससे ज़ाइल नहीं हो सिती जैसे कि सूरज,
ْ و الش ْم ُس ت ْج ِر
ی ل ُِم ْستق ِر لھا ـ
िे बजाए
١٠ آیہ٧ ع٢٥ ی جعل لک ُُم ْاْل ْرض م ْھدا الخ جـ
ْ ال ِذ
दज़ फ़रमा दें दीबाचा में, सबिो सलाम मसनून कबूल होवे।
4
ज़मीन साकिन है
अलजवाब :
بسم اهلل الرحمن الرحیم الحمد هلل الذی بامرہ قامت السماء و
اْلرض و الصلوۃ و السالم عىل شفیع یوم العرض و ٰا له و صحبه
و ابنه و حزبه اجمعنی امنی ـ
मुजाहहद ए िबीर, मु़िललस ए फ़िीर, हक तलब, हक पज़ीर,
سلمه اهلل القدیر و علیکم السالم و رحمة اهلل و برکاته ـ
5
ज़मीन साकिन है
रहमत उल्लाह अलैहह िा लहजा जल्द से जल्द हक कबूल िर लेने
वाला मैंने आपिी बराबर न देखा, अपने जमे हुए ़ियाल से फ़ौरन
हक िी तरफ़ रुजू ले आना खजसिा मैं बारहा आपसे तखिबा िर
चुिा नफ़्स से खजहाद है और नफ़्स से खजहाद, खजहाद ए अिबर है तो
आप इसमें मुजाहहद ए अिबर हैं,
بارك اهلل تعایل و تقبل امنی ـ
6
ज़मीन साकिन है
सय्यिदन
ु ा अब्दल्ल
ु ाह इब्न ए मसऊद व साहहब ए ससऱ ए रसूल
उल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम हज़रत हुज़ैफ़ा इब्नुल
यमान रदद अल्लाहु तआला अन्हु ने इस आयत ए िरीमा से मुतलक
हरित िी नफ़ी मानी यहााँ ति कि अपनी जगह काइम रहिर फमहवर
पर घूमने िो भी ज़वाल बताया (देखखए नम्बर 2) हज़रत इमाम अबू
माललि ताबई ससका जलील तलमीज़ ए हज़रत अब्दल्ल ु ाह इब्न ए
अब्बास ने ज़वाल िो मुतलक हरित से तफ़सीर किया (देखखए
आख़िर नम्बर 2) इन हज़रात से ज़ाइद अरबी ज़बान व मआनी कुरआन
समझने वाला िौन। अल्लामा कनज़ामुद्दीन हसन कनशापुरी ने तफ़सीर
रग़ाइबुल फ़ुरकान में इस आयत ए िरीमा िी यह तफ़सीर फ़रमाई,
(ا ْن ت ُز ْوْل )کراھة زوالھما عن مقرھما و مرکزھما ـ
7
ज़मीन साकिन है
फ़रमाया,
ْل یتم اْلفرتاش علیھا ما لم تکن سا کنة و یکیف یف ذلك ما
اعطاھا خالقھا و رکز فیھا من المیل الطبییع ایل الوسط الحقییق
ك الس ٰم ٰو ِت و ْاْلرض ا ْن ت ُز ْوْل ۔ ٰ بقدرته و اختیار ہاِن
ُ الل ُی ۡم ِس
इसी आयत िे नीचे तफ़सीर ए िबीर इमाम फ़़िरुद्दीन राज़ी
में है,
اعلم ان کون اْلرض فراشا مشروط بکونھا سا کنة فاْلرض غی
متحرکة ْل باْلستدارۃ و ْل باْلستقامة و سکون اْلرض لیس
اْل من اهلل تعایل بقدرته و اختیارہ و لھذا قال اهلل تعایل اِن
ك الس ٰم ٰو ِت و ْاْلرض ا ْن ت ُز ْوْل ۔ اھ ملتقطا ـ ٰ
ُ الل ُی ۡم ِس
9
ज़मीन साकिन है
ब ररवायत ए अब्दल्ल
ु ाह इब्न ए उमर रदद अल्लाहु तआला अन्हम
ु ा
हज़रत अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम है। और अजाइब
ए नामाए इलाहीया से यह कि आयत ए िरीमा,
ا ْن ت ُز ْوْل
दव
ु म
ما حدثکم حذیفة فصدقوہ ۔
दस
ू री हदीस
ْل وجع اْل وجع العنی و ْل ھم اْل ھم الدین ـ
13
ैज़मीन साकिन ह
कनहाया इब्न ए असीर में है,
یف حدیث جندب الجھن و اهلل لقد خالطه سھم و لو کان زائلة
لتحرك الزائلة کل شیئ من الحیوان یزول عن مکانه و ْل
یستقر و کان ھذا المریم قد سکن نفسه ْل یتحرك لئال یحس
به فیجھز علیه ـ
14
ज़मीन साकिन है
قلق الشیئ قلقا و ھوان ْل یستقر یف مکان واحد ۔
मुफ़रदात ए इमाम राकग़ब में है,
قر یف مکانه یقر قرارا ثبت ثبوتا جامدا واصله من القر و ھو
الربد و ھو یقتض السکون و الحر یقتض الحركة ـ
कामूस में है,
قر با لمکان ثبت و سکن کاستقر ۔
देखो ज़वाल इंज़आज है और इंज़आज कलक मुकाकबल ए
करार और सुिून हो तो ज़वाल मुकाकबल ए सुिून है और मुकाकबल
ए सुिून नहीं मगर हरित तो हरित ज़वाल है। कुरआन ए अज़ीम
आसमान व ज़मीन िे ज़वाल से इंिार फ़रमाता है, ला जरम उनिी
हर गूना हरित िी नफ़ी फ़रमाता है।
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ज़मीन साकिन है
उनिा मिर इतना नहीं खजससे पहाड जगह से टल जाएं या
अगरचे उनिा ऐसा बडा हो कि खजससे पहाड टल जाएं। यह कतअन
हमारी ही मुअिद और हर गूना हरित ए खजबाल िी नफ़ी है।
(अ) हर आककल बल्कि ग़बी ति जानता है कि पहाड साकबत
साकिन व मुसतकर एि जगह जमे हुए हैं खजनिो असलन जुंकबश
नहीं। तफ़सीर इनायतुल िाज़ी में है,
ثبوت الجبل یعرفه الغیب و الذک ۔
कुरआन ए अज़ीम में उनिो रवासी फ़रमाया, रासी एि जगह
जमा हुआ पहाड, अगर एि उंगल भी सरि जाएगा कत्अन ज़ालल
जबल साददक आएगा न यह कि तमाम दन ु या में लुढिता फिरे और
ज़ालुल जबल न िहा जाए, सबात व करार साकबत रहे कि अभी दन ु या
से आख़िरत िी तरफ़ गया ही नहीं ज़वाल िै से हो गया। अपनी
मनकूला इबारत ए जलालैन देखखए पहाड िे इसी सबात व
इसकतकरार पर शराए इस्लाम िो उससे तशबीह दी खजनिा ज़रा भर
हहलाना मुमकिन नहीं।
(ब) इसी इबारत ए जलालैन िा आख़िर देखखए कि तफ़सीर ए
दवु म पर यह आयत,
آیہ تخ ُِر الْ ِجبا ُل ھدا
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ज़मीन साकिन है
यह मज़मून अबू उबैद व इब्न ए जरीर व इब्नुल मुंखज़र व इब्न ए
अबी हाकतम ने अब्दल्ल
ु ाह इब्न ए अब्बास रदद अल्लाहु तआला अन्हम ु ा
से ररवायत किया नीज़ इब्न ए जरीर ददहाि से रावी हुए
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ज़मीन साकिन है
استقر مکان ُه
ْ فاِ ِن
में था, इरशाद िा इरशाद मकाररहा जाहा ए करार और
िश्शाफ़ िा लफ्जज़ तंकललओ ़िास काकबल ए ललहाज़ है कि उखड
जाने ही िो ज़वाल बताया।
(ह) सईद इब्न ए मंसूर अपने सुनन और इब्न ए अबी हाकतम
तफ़सीर में हज़रत अबू माललि गज़वान ग़फ़्फारी िू फ़ी उस्ताज़ ए
इमाम सदी िबीर व तलमीज़ हज़रत अब्दल्ल ु ाह इब्न ए अब्बास रदद
अल्लाहु तआला अन्हम ु ा से रावी,
و اِ ْن کان مک ُْر ُھ ْم لِت ُز ْول ِم ْن ُه الْ ِجبا ُل قال تحرکت ۔
الل م ْن ی ُم ْو ُت ـ
ُٰ ث ِ ُ ٰ و اقْس ُم ْوا ِب
ُ الل جھد ا ْیما نِ ِھ ْم ْل ی ْبع
ला जरम तीसरी आयत ए िरीमा में ज़वाल से मुराद दन ु या से
आख़िरत में जाना है, न यह कि दन
ु या में उनिा चलना फिरना ज़वाल
नहीं कत्अन हकीकी ज़वाल है खजसिी सनदें ऊपर सुन चुिे और
अज़ीम शाफ़ी बयान आगे आता है मगर यहााँ उसिा खज़क्र है खजसिी
वह कसम खाते थे और वह न था मगर दन ु या से इंकतकाल माना
मजाज़ी िे ललए करीना दरिार होता है यहााँ करीना उनिे यही
अकवाल ए कब ऐकनही हैं बल्कि ़िुद उसी आयत ए सद्र में करीना
सरीहा मकाललया मौजूद कि रोज़ ए कयामत ही िे सवाल व जवाब
िा खज़क्र फ़रमाता है,
َل ال ِذیَنَ ظل مموَا ربنا َاب فیقموَ م وَ ا نَ ِذ َِر الناسَ یوَمَ یات ِ م
َ ِْیَ َالعذ م
َالر مسلَ اوَ لم
ع م َ ِ ل اجلَ ق ِر یَبَ نم ِجبَ دعوتكَ وَ نت ِبَ ٰ ِاخِرناَ ا
ل ما لکممَ مِنَ زوالَ ـ
َتکمونموَا اقسم متمَ مِنَ قبَ م
21
ज़मीन साकिन है
लेकिन िरीमा
ك الس ٰم ٰو ِت و ْاْلرض ا ْن ت ُز ْوْل ـ ٰ اِن
ُ الل ُی ْم ِس
में िोई करीना नहीं तो माना मजाज़ी लेना किसी तरह जाइज़
नहीं हो सिता बल्कि कत्अन ज़वाल अपने माना ए हकीकी पर रहेगा
यानी करार व सबात व सुिून ए हकीकी िा छोडना, इसिी नफ़ी है
तो ज़रूर सुिून िा इस्बात है एि जगह माना मजाज़ी में इस्तेमाल
देखिर दस ू री जगह कबला करीना मजाज़ मुराद लेना हरकगज़ हलाल
नहीं।
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ज़मीन साकिन है
यूाँ तो दन
ु या भर में िोई हरित िभी भी ज़वाल न हो कि जहााँ
ति अहसनुल ़िाललकीन तआला ने इमिान ददया है उससे आगे नहीं
बढ सिती।
(5) अगर इन माना िो मजाज़ी न लीखजए बल्कि िहहए कि
ज़वाल आम है मिान व मुसतकर हकीकी ़िास से सरिना और मौका
ए आम और मूकतन अअम और अअम अज़ अअम से जुदा होना सब
उसिे फ़द़ हैं तो हर एि पर उसिा इतलाक हकीकत है जैसे ज़ैद व
अम्र व बक्र वग़ैरहुम किसी फ़द़ िो इंसान िहना तो अब भी कुरआन
ए िरीम िा मफ़ाद ज़मीन िा वही सुिून ए मुतलक होगा न कि
अपने मदार से बाहर न जाना।
ت ُز ْوْل
फ़ेल है और महल ए नफ़ी में वाररद है और इल्म ए उसूल में
मुसऱह है कि फ़ेल कुव्वत ए निरा मे है और निरा हय्यिज़ नफ़ी में
आम होता है तो माना ए आयत यह हुए कि आसमान व ज़मीन िो
किसी ककस्म िा ज़वाल नहीं, न मौका ए आम से न मुसतकर ए
हकीकी ़िास से और यही सुिून ए हकीकी है व ललल्लाहहल हि।
यही वजह है कि हमारे मुजाहहद ए िबीर िो अपनी इबारत में
हर जगह कै द बढानी पडी "ज़मीन िा अपने अमािन से ज़ाइल हो
जाना उसिा ज़वाल होगा" ज़ाइल हो जाना कत्अन मुतलकन ज़वाल
है, ज़ाइल हो जाना ज़वाल िा तरखजमा ही तो है, मिान ए ़िास से
हो ़िवाह अमािन से मगर अव्वल िे इ़िराज िो इस कै द िी हाजत
होती तो यूाँही फ़रमाया "ज़मीन िा ज़वाल उसिे अमािन से" फिर
फ़रमाया "खजन अमािन में अल्लाह तआला ने उसिो इमसाि ददया
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ज़मीन साकिन है
है उससे बाहर सरि नहीं सिती" फिर फ़रमाया "अपने मदार में
इमसाि िदा शुदा है उससे ज़ाइल नहीं हो सिती" और नफ़ी िी
जगह फ़रमाया "हज़रत अब्दल्ल ु ाह इब्न ए मसऊद रदद अल्लाहु तआला
अन्हु ने आसमान िे सुिून फ़ी मिाकनही िी तसरीह फ़रमा दी मगर
ज़मीन िे बारे में ऐसा नहीं फ़रमाया" यहााँ जमा अमािन िा ज़ाहहर
िर ददया मगर रब अज़्जा व जल्ल ने तो उनमें िोई कै द न लगाई,
मुतलक
ك
ُ یُ ْم ِس
फ़रमाया है और मुतलक
ا ْن ت ُز ْوْل ۔
अल्लाह आसमान व ज़मीन हर एि िो रोिे हुए है कि सरिने
न पाए, यह न फ़रमाया कि उसिे मदार में रोिे हुए है, यह न फ़रमाया
कि हर एि िे ललए अमािन ए अदीदा हैं, उन अमािन से बाहर न
जाने पाए। तो इसिा बढाना िलाम ए इलाही में अपनी तरफ़ से
पैवंद लगाना होगा अज़ पेश ़िेश कुरआन ए अज़ीम िे मुतलक िो
मुकैिद, आम िो मु़ििस बनाना होगा और यह हरकगज़ रवा नहीं।
अहले सुन्नत िा अकीदा है जो उनिी िु तुब ए अकाइद में मुसऱह है
कि
النصوص تحمل عىل ظواھرھا ـ
बल्कि तमाम दलालतों िा बडा िाटि यही है कि बतौर ए
़िुद नुसूस िो ज़ाहहर से िे रें, मुतलक िो मुकैिद, आम िो मु़ििस
िरें।
24
ज़मीन साकिन है
ْ ما لک ُْم م
ِن زوال
िी त़िसीस ए वाज़ेह से
ا ْن ت ُز ْوْل
िो भी मु़ििस िर लेना इसिी नज़ीर यही है कि
िी त़िसीस देखिर
25
ज़मीन साकिन है
अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम से उसिे मआनी सीखे
उन्होंने आयत ए िरीमा िो हर गूना ज़वाल िी नाफ़ी और सुिून ए
मुतलक हकीकी िी मुस्बत बताया। सईद इब्न ए मंसूर व अब्द इब्न ए
हुमैद व इब्न ए जरीर व इब्नुल मुंखज़र ने हज़रत शकीक इब्न सलमा से
कि ज़माना ए ररसालत पाए हुए थे ररवायत िी और हदीस इब्न ए जरीर
ब ररजाल ए सहीहैन बु़िारी व मुस्लस्लम है,
जुंदब
ु बजली िाब अहबार िे पास जािर वापस आए, हज़रत
अब्दल्ल
ु ाह रदद अल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया, िहो िाब ने तुमसे
क्या िहा। अज़़ िी, िहा कि आसमान चक्की िी तरह एि िीली
27
ज़मीन साकिन है
में है और िीली एि फ़ररश्ते िे िांधे पर है। हज़रत अब्दल्ल
ु ाह ने
फ़रमाया, मुझे तमन्ना हुई कि तुम अपने नाका िे बराबर माल देिर
इस सफ़र से छूट गए होते, यहूददयत िी ़िराश खजस ददल में लगती
है फिर मुश्किल ही से छूटती है, अल्लाह तो फ़रमा रहा है बेशि
अल्लाह आसमानों और ज़मीन िो थामे हुए है कि न सरिें , उनिे
सरिने िो घूमना ही िाफ़ी है।
अब्द इब्न ए हुमैद ने कतादा शाकगद़ ए हज़रत ए अनस रदद
अल्लाहु तआला अन्हु से ररवायत िी,
ان کعبا کان یقول ان السماء تدور عىل نصب مثل نصب الرحا
ٰ فقال حذیفة بن الیمان ریض اهلل تعایل عنھما کذب کعب اِن
الل
ك الس ٰم ٰو ِت و ْاْلرض ا ْن ت ُز ْوْل ۔
ُ ُی ْم ِس
िाब िहा िरते कि आसमान एि िीली पर दौरा िरता है
जैसे चक्की िी िीली। इस पर हुज़ैफ़ा इब्नुल यमान रदद अल्लाहु
तआला अन्हु ने फ़रमाया िाब ने झूट िहा, बेशि अल्लाह आसमानों
और ज़मीन िो रोिे हुए है कि जुंकबश न िरें। देखो इन अखजल्ला ए
सहाबा इिराम रदद अल्लाहु तआला अन्हम ु ने मुतलक हरित िो
ज़वाल माना और इस पर इंिार फ़रमाया और काइल िी तिज़ीब
िी और इसे बकाया ए ़ियालात ए यहूददयत से बताया, क्या वह
इतना न समझ सिते थे कि हम िाब िी नाहक तिज़ीब क्यों
फ़रमाएं, आयत में तो ज़वाल िी नफ़ी फ़रमाई है "और उनिा यह
फिरना चलना अपने अमािन में है जहााँ ति अहसनुल ़िाललकीन
तआला ने उनिो हरित िा इमिान ददया है वहााँ ति उनिा हरित
28
ज़मीन साकिन है
िरना उनिा ज़वाल न होगा" मगर उनिा ज़हन मुबारि इस माना ए
बाकतल िी तरफ़ न गया, न जा सिता था बल्कि उसिे इब्ताल ही
िी तरफ़ गया और जाना ज़रुर था कि अल्लाह तआला ने मुतलकन
ज़वाल िी नफ़ी फ़रमाई है न कि ़िास ज़वाल अकनल मदार िी तो
उन्होंने रवा न रखा कि िलाम ए इलाही में अपनी तरफ़ से यह पैवंद
लगा लें, ला जरम उस पर रद फ़रमाया और इस कदर शदीद व अशद
फ़रमाया व ललल्लाहहल हि।
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ज़मीन साकिन है
मुतलक हरित िा इंिार फ़रमाती है और वह इंिार आसमान व
ज़मीन दोनों िे ललए एि नस्ट्क एि लफ्जज़
ا ْن ت ُز ْوْل
में है खजसिी ज़मीर दोनों िी तरफ़ है तो कत्अन आयत ने
ज़मीन िी भी हर गूना हरित िो बाकतल फ़रमाया खजस तरह
आसमान िी। एि शख़्स िहे हज़रत सय्यिदन ु ा युसुफ़ अलैहहस
सलातो विलाम ने आफ़ताब िो अपने ललए सज्दा िरते न देखा
था, इस पर आललम फ़रमाए, वह झूटा है, आयत ए िरीमा में है,
لزوال الشمس ۔
دلوکہا زوالہا ـ
33
ज़मीन साकिन है
वजह ए तसफमया मुत्ताररद नहीं होती। िु तुब में यह मशहूर
हहिायत है कि मुत्ताररद मानने वाले से पूछा खजरजीर यानी चीने िो
कि एि ककस्म िा अनाज है खजरजीर क्यों िहते हैं। िहा,
ۡ و الش ْم ُس ت ْج ِر
ی ل ُِم ْستق ِر لھا
में अब्दल्ल
ु ाह इब्न ए मसऊद रदद अल्लाहु तआला अन्हु िी
ककराअत है,
यानी सूरज चलता है किसी वक़्त उसे करार नहीं। ऊपर गुज़रा
कि करार िा मुकाकबल ज़वाल है, जब किसी वक़्त करार नहीं तो हर
34
ज़मीन साकिन है
वक़्त ज़वाल है अगरचे तस्मीया में एि ज़वाल ए मुअिन िा नाम
ज़वाल रखा, ग़ज़़ िलाम इसमें है कि अहादीस ए मरफ़ूआ सय्यिद ए
आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम व आसार ए सहाबा ए
किराम व इज्मा अहले इस्लाम ने आफ़ताब िा अपने मदार में रहिर
एि जगह से सरिने िो ज़वाल िहा अगर ज़मीन मुतहररिि होती तो
यकीनन एि जगह से उसिा सरिना ही ज़वाल होता अगरचे मदार
से बाहर न जाती लेकिन कुरआन ए अज़ीम ने साफ़ इरशाद में उसिे
ज़वाल िा इंिार फ़रमाया है तो कतअन वाखजब कि ज़मीन असलन
मुतहररिि न हो।
36
ैज़मीन साकिन ह
आयत 3 :
ل ُِدل ُْو ِك الش ْم ِس ـ
आयत 4 :
فلما افلت ـ
आयत 5 :
و س ِبح بِح ْم ِد ر ِبك ق ْبل ُطل ُْو ِع الش ْم ِس و ق ْبل الْغ ُُر ْو ِب ـ
आयत 6 :
و س ِبح ِبح ْم ِد ر ِبك ق ْبل ُطل ُْو ِع الش ْم ِس و ق ْبل غ ُُر ْو ِبھا ـ
आयत 7 :
ح ٰیت اِذا بلغ مطلِع الشم ِس وجدھا تطل ُ ُع ع ٰىل ق ْوم ل ْم ن ْجع ْل ل ُھ ْم
م ْ
ِن دُ ْونِھا ِسرتا ـ
आयत 8 :
37
ज़मीन साकिन है
है हालांकि वह ग़ार िे खुले मैदान में हैं, यह कुदरत ए इलाही िी
कनशाकनयों में है। यूाँही सद्हा अहादीस इरशाद ए सय्यिद ए आलम
सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम ़िुसूसन हदीस ए सहीह बु़िारी
और अबू ज़र रदद अल्लाहु तआला अन्ह,ु
قال النیب صىل اهلل تعایل علیه ْلیب ذر حنی غربت الشمس
اتدری ا ین تذھب قلت اهلل و رسوله اعلم قال فانھا تذھب حیت
تسجد تحت العرش فتستأذن فیؤذن لھا و یوشك ان تسجد فال
یقبل منھا و تستأذن فال یؤذن لھا یقال لھا ارجیع من حیث
ْ جئت فتطلع من مغربھا فذلك قوله تعایل و الش ْم ُس ت ْج ِر
ی
ل ُِم ْستق ِر لھا ٰذ لِك ت ْق ِد ْی ُر الْع ِز ْی ِز الْع ِل ْی ِم ـ
لک ل حد مطلع ۔
39
ज़मीन साकिन है
मजमउल कबहार में है,
ای عالہ ـ
ज़ाहहर है कि ज़मीन आफ़ताब पर नहीं चढती और मु़िाललफ़
िे नज़दीि आफ़ताब भी उस वक़्त ज़मीन पर न चढा कि तुलूअ
उसिी हरित से नहीं ला जरम तुलूअ ससरे से बाकतल महज़ है मगर
मिान ए ज़मीन िो हरित ए ज़मीन महसूस नहीं होती, उन्हें वहम
गुज़रता है कि आफ़ताब चलता, ढलता है ललहाज़ा तुलूअ व ज़वालुश
शम्स िहते हैं, यह िोई िाफफ़र िह सिे , मुसलमान क्योंिर वह रवा
रख सिे कि जाहहलाना वहम जो लोगों िो गुज़रता है कुरआन ए
अज़ीम भी मआज़ अल्लाह इसी वहम पर चला है और वाके अ िे
ख़िलाफ़ तुलूअ व ज़वाल िो आफ़ताब िी तरफ़ कनस्बत फ़रमा ददया
है वल इयाज़ु कबल्लाहह तआला। ला जरम मुसलमान पर फ़ज़़ है कि
हरित ए शम्स व सुिून ए ज़मीन पर ईमान लाए वल्लाहुल हादी।
(10) सूरह ए ताहा व सूरह ए ज़ु़िरुफ़ दो जगह इरशाद हुआ है,
(مھدا )فراشا
फ़रमाता है,
फ़रमाता है,
41
ज़मीन साकिन है
45
ैज़मीन साकिन ह
آمنی الٰه الحق اٰمنی و ُ
اعف عنا و ا ْغ ِفر لنا و ارح ْمنا ا نْت م ْولٰىنا
ک ِف ِر ْین ـ الحمد هلل رب العلمنی و صىل
فا ْن ُصرنا عىل الْق ْو ِم الْ ٰ
اهلل تعایل عىل سیدنا و مولٰینا محمد و ٰا له و صحبه و ابنه و
حزبه اجمعنی اٰمنی و اهلل تعایل اعلم ـ
العطایا النبویہ یف الفتاوی الرضویہ ،جـ ،12/12صـ 289-273و جـ ،27/30صـ 228-195ـ
تمت بالخی
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ज़मीन साकिन है
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