Zameen Saakin Hai (Hindi)

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jamaIna
saaikna hE !
SAB YA
VIRTUAL PUBLICATION
.jamaIna
saaikna hE !

SAB YA
VIRTUAL PUBLICATION
‫ै‪ज़मीन साकिन ह‬‬

‫بسم اهلل الرحمن الرحیم ـــ نحمدہ و نصىل عىل رسوله الکریم ـ‬
‫‪मसअला 31 : अज़ मोती बाज़ार लाहौर, मसअला मौलवी‬‬
‫_ ‪हाकिम अली साहहब, 14 जुमादल ऊला 1339 हहजरी‬‬
‫یا سیدی اعىل حضرت سلمکم اهلل تعایل ـــ السالم علیکم و رحمة اهلل و‬
‫ك الس ٰم ٰو ِت و‬ ‫برکاته ـــ اما بعد ھذا من تفسی جاللنی (اِن ٰ‬
‫الل ُی ْم ِس ُ‬
‫ْاْل ْرض ا ْن ت ُز ْوْل )ای یمنعھما من الزوال و ایضا (او ل ْم تک ُْونُ ْوا‬
‫ِن )زائدۃ (زوال )عنھا‬ ‫ِن ق ْب ُل )یف الدنیا (ما لک ُْم م ْ‬
‫اقْس ْم ُت ْم )حلفتم (م ْ‬
‫لِت ُز ْول ِم ْن ُه ( ایل اْلخرۃ و ایضا (و اِ ْن )ما (کان مک ُْر ُھ ْم )و ان عظم‬
‫الْ ِجبا ُل )المعن ْل یعبأ به و ْل یضر اْل انفسھم و المراد بالجبال ھنا‬
‫قیل حقیقتا و قیل شرائع اْلسالم المشبھة بھا یف القراء و الثبات و یف‬
‫قراءۃ بفتح ْلم لتزول و رفع الفعل فان مخففة و المراد (عہ )تعظیم‬
‫مکرھم و قیل المراد بالمکر کفرھم و یناسبه عىل الثانیة تکاد‬
‫السم ٰوت یتفطرن منه و تنشق اْلرض و تخر الجبال ھدا وعىل اْلول ما‬
‫ٰ‬
‫قرئ و ما کان ـ و سردار من دامت برکاتکم و ا ین است از تفسی‬
‫ك الس ٰم ٰو ِت و ْاْل ْرض)‬ ‫حسین (اِن ٰ‬
‫الل )بدرستیکہ خداےئ تعایل (یُ ْم ِس ُ‬
‫نگاہ یم دارد آسمانہا و زمنی را (ا ْن ت ُز ْوْل )براےئ آنکہ زائل نہ شوند‬
‫از اما کن خود چہ ممکن را در حال بقا ناچار است از نگاہ دارندہ آوردہ‬
‫اند کہ چوں یہود و نصاری عزیر و عییس را بفرزندی حق سبحنہ‬

‫‪1‬‬
‫ै‪ज़मीन साकिन ह‬‬
‫نسبت کردند آسمان و زمنی نزدیک بآں رسید کہ شگافتہ گردد حق‬
‫تعایل فرمود کہ من بقدرت نگاہ یم دارم ایشاں را تا زوال نیابند یعن‬
‫از جاےئ خود نروند ایضا (او ل ْم تک ُْونُ ْوا )در جواب ایشاں گویند‬
‫فرشتگان آیا نبودید شما کہ از روےئ مبالغہ (اقْس ْم ُت ْم م ْ‬
‫ِن ق ْب ُل)‬
‫سوگند یم خوردید پیش ازیں در دنیا کہ شما پایندہ و خوابیدہ بودید‬
‫ِن زوال )نباشد شمارا ہیچ زوا لے مراد آنست کہ یم گفتند‬
‫(ما لک ُْم م ْ‬
‫کہ مادر دنیا خواہیم بود و بسراےئ دیگر نقل نخواہیم نمود و ایضا‬
‫(و اِ ْن کان مک ُْر ُھ ْم )و بدرستیکہ بود مکر ایشاں در سخیت و ہول‬
‫ساختہ پرداختہ (لِت ُز ْول )تا از جاےئ برود ( ِم ْن ُه الْ ِجبا ُل )زاں مکر کوہ‬
‫ہا ـ‬
‫‪महबूब व मुहहब ए फ़िीर‬‬
‫ایدکم اهلل تعایل یف کل حال ـ‬

‫‪जब िाफफ़रों िे ज़वाल िे माना उनिा इस दन‬‬ ‫‪ु या से दारुल‬‬


‫‪आख़िरत में जाना मुसल्लम हुआ तो मुआमला साफ़ हो गया क्योंकि‬‬
‫‪िाफफ़र ज़मीन पर फिरते चलते हैं, इस फिरने चलने िा नाम ज़वाल‬‬
‫ँ‪न हुआ कि यह उनिा चलना फिरना अपने अमािन में है कि जहाा‬‬
‫ँ‪ति अल्लाह तआला ने उनिो हरित िरने िा इमिान ददया है वहाा‬‬
‫‪ति उनिा हरित िरना उनिा ज़वाल न हुआ यही हाल पहाडों िा‬‬
‫‪हुआ कि उनिा अपने अमािन से ज़ाइल हो जाना उनिा ज़वाल‬‬
‫‪हुआ। जब यह हाल है तो ज़मीन िा भी अपने अमािन से ज़ाइल हो‬‬
‫‪2‬‬
ज़मीन साकिन है
जाना उसिा ज़वाल होगा और अपने अमािन में उसिा हरित िरना
ज़वाल नहीं हो सिता। शुक्र है उस परवरददगार िा कि किसी सहाबी
रदि
‫ و المعن و ْلن کان مکرھم من الشدۃ بحیث تزول عنھا الجبال و‬: ‫عہ‬
‫ کمالنی ۔‬۱۲ ‫تنقطع عن اما کنھا ـ‬

अल्लाहु तआला अन्हु से भी मुझे गुरेज़ न हुआ और मेरी


मुश्किल भी अज़ बारगाह ए हल्लल्लल मुश्किलात हल हो गई ब बरित
ए िलाम ए िरीम,
‫بـ‬ ُ ‫الل ی ْجع ْل ل ُه م ْخرجا ـــ و یر ُزقْ ُه م ِْن ح ْی‬
ُ ‫ث ْل یحت ِس‬ ٰ ‫و م ْن یت ِق‬

और यह इस तरह हुआ कि हज़रत अब्दल्लु ाह इब्न ए मसऊद रदद


अल्लाहु तआला अन्हु ने आसमान िे सुिून फ़ी मिान िी तसरीह
फ़रमा दी मगर ज़मीन िे बारे में ऐसा न फ़रमाया यानी आसमान िी
तसरीह िी तरह तसरीह न फ़रमाई यानी ़िामोशी फ़रमाई, कुरबान
जाऊाँ अहसनुल ़िाललकीन तबारि व तआला िे और बाइस ़िल्कक
ए आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम िे और हज़रत
मुउल्लल्लमुत तहहयात रदद अल्लाहु तआला अन्हु िे कि साइंस िी
सरिोबी िे ललए ज़मीन िे ज़वाल उसिे अमािन से िे माना आपिे
इस ताबेदार मुजाहहद ए िबीर पर अयााँ फ़रमाए कि ज़मीन िे ज़वाल
न िरने िे यह माना हैं कि खजन अमािन में अल्लाह तआला ने उसिो
इमसाि किया है उससे यह बाहर नहीं सरि सिती मगर उन अमािन
में उसिो हरित ए अम्र िरदा शुदा अता फ़रमाई हुई है जैसे कि उस
पर िाफफ़र चलते फिरते हैं और यह उनिा ज़वाल नहीं है इसी तरह से

3
ज़मीन साकिन है
अपने मदार में और सूरज िी हमराही में इमसाि िरदा शुदा है और
जाखज़बा और रफ़्तार क्या है ससफ़़ अल्लाह पाि िे इमसाि िा एि
ज़ुहूर है और िु छ नहीं, अब चाहें तो जाखज़बा और रफ़्तार दोनों िो
मादम ू िर दें और हर चीज़ िो उसिे हय्यिज़ में साकिन फ़रमा दें,
उससे ज़ाइल नहीं हो सिती जैसे कि सूरज,
ْ ‫و الش ْم ُس ت ْج ِر‬
‫ی ل ُِم ْستق ِر لھا ـ‬

िी रू से अपने मजरे में इमसाि किया गया हुआ है और अपने


मजरे में चल रहा है मगर उसिे इस चलने िा नाम ज़वाल नहीं बल्कि
जरयान है तो ज़मीन िा भी अपने मदार में और सूरज िी हमराही में
चलना उसिा जरयान है न कि ज़वाल।
‫الل ُی ْؤتِ ْی ِه م ْن یشٓا ُء فالحمد هلل رب ال ٰعلمنی و الشکر و المنة‬
ِ ٰ ‫ض ُل‬
ْ ‫ٰذ لِك ف‬

ग़रीब नवाज़ िरम फ़रमा िर मेरे साथ मुत्तफफ़क हो जाओ तो


फिर इन शा' अल्लाह तआला साइंस िो और साइंसदानों िो
मुसलमान किया हुआ, हााँ
‫ا ل ْم ن ْجع ِل ْاْل ْرض ِمھدا‬

िे बजाए
١٠ ‫ آیہ‬٧ ‫ ع‬٢٥ ‫ی جعل لک ُُم ْاْل ْرض م ْھدا الخ جـ‬
ْ ‫ال ِذ‬
दज़ फ़रमा दें दीबाचा में, सबिो सलाम मसनून कबूल होवे।

4
ज़मीन साकिन है
अलजवाब :

‫بسم اهلل الرحمن الرحیم الحمد هلل الذی بامرہ قامت السماء و‬
‫اْلرض و الصلوۃ و السالم عىل شفیع یوم العرض و ٰا له و صحبه‬
‫و ابنه و حزبه اجمعنی امنی ـ‬
मुजाहहद ए िबीर, मु़िललस ए फ़िीर, हक तलब, हक पज़ीर,
‫سلمه اهلل القدیر و علیکم السالم و رحمة اهلل و برکاته ـ‬

दसवां ददन है आपिी रखजस्ट्री आई, मेरी ज़रुरी किताब कि


तबअ हो रही है उसिी अस्ल िे सफ़हा 1088 ति किताब ललख चुिे
और सफ़हा 1090 िे बाद से मुझे तकरीबन चालीस सफ़हा िे कदर
मज़ामीन बढाने िी ज़रूरत महसूस हुई, यह मबाहहस ए जलीला
दकीका पर मुशतफमल थी, मैंने उनिी तिमील मुकद्दम जानी कि
तबअ जारी रहे, इधर तकबयत िी हालत आप ़िुद मुलाहज़ा फ़रमा
गए हैं वही िै फफ़यत अब ति है, अब भी उसी तरह चार आदमी िु सी
पर कबठािर मस्जिद िो ले जाते, लाते हैं, ऊन औराक िी तहरीर और
उन मबाहहस ए जलील ग़ाफमज़ा िी तनकीह व तकरीर से कबहम्दिहह
तआला रात फ़ाररग़ हुआ और आपिी महब्बत पर इय्यिनान था कि
इस ज़रूरी दीनी िाम िी तकदीम िो नागवार न रखेंग,े आपने अपना
लकब मुजाहहद ए िबीर रखा है मगर मैं तो अपने तखिबे से आपिो
मुजाहहद ए अिबर िह सिता हूाँ। हज़रत मौलाना अल असदल ु
असदल ु अशद मौलवी मुहम्मद वसी अहमद साहहब मुहद्दद्दस सूरती

5
ज़मीन साकिन है
रहमत उल्लाह अलैहह िा लहजा जल्द से जल्द हक कबूल िर लेने
वाला मैंने आपिी बराबर न देखा, अपने जमे हुए ़ियाल से फ़ौरन
हक िी तरफ़ रुजू ले आना खजसिा मैं बारहा आपसे तखिबा िर
चुिा नफ़्स से खजहाद है और नफ़्स से खजहाद, खजहाद ए अिबर है तो
आप इसमें मुजाहहद ए अिबर हैं,
‫بارك اهلل تعایل و تقبل امنی ـ‬

उम्मीद है कि कब औकनहह तआला इस मसअला में भी आप


ऐसा ही जल्द अज़ जल्द कबूल ए हक फ़रमाएंगें कि बाकतल पर एि
आन िे ललए भी इसरार मैंने आपसे न देखा, व लिल्लाहिि िम्द।
इस्लामी मसअला यह है कि ज़मीन व आसमान दोनों साकिन
हैं, िवाकिब चल रहे हैं,

ِ ‫کُل ِیف ْ فل‬


‫ك ی ْسب ُح ْون ـ‬

हर एि एि फ़लि में तैरता है जैसे पानी में मछली। अल्लाह


तआला अज़्जा व जल्ल िा इरशाद आपिे पेश ए नज़र है,
‫ك الس ٰم ٰو ِت و ْاْلرض ا ْن ت ُز ْوْل و لئ ِْن زالتا اِ ْن‬ ٰ ‫اِن‬
ُ ‫الل ُی ْم ِس‬
ْ ‫ِن احد م‬
‫ِن بع ِدہ اِ نه کان ح ِل ْیما غف ُْورا ـ‬ ْ ‫ا ْمسک ُھما م‬
मैं यहााँ अव्वलन इज्मालन चंद हफ़़ गुज़ाररश िरूाँ कि इन शा'
अल्लाह तआला आपिी हक पसंदी िो वही िाफ़ी हो फिर कदरे
तफ़सील। इज्माल यह कि
‫افقه الصحابة بعد الخلفاء اْلربعه ـ‬

6
ज़मीन साकिन है
सय्यिदन
ु ा अब्दल्ल
ु ाह इब्न ए मसऊद व साहहब ए ससऱ ए रसूल
उल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम हज़रत हुज़ैफ़ा इब्नुल
यमान रदद अल्लाहु तआला अन्हु ने इस आयत ए िरीमा से मुतलक
हरित िी नफ़ी मानी यहााँ ति कि अपनी जगह काइम रहिर फमहवर
पर घूमने िो भी ज़वाल बताया (देखखए नम्बर 2) हज़रत इमाम अबू
माललि ताबई ससका जलील तलमीज़ ए हज़रत अब्दल्ल ु ाह इब्न ए
अब्बास ने ज़वाल िो मुतलक हरित से तफ़सीर किया (देखखए
आख़िर नम्बर 2) इन हज़रात से ज़ाइद अरबी ज़बान व मआनी कुरआन
समझने वाला िौन। अल्लामा कनज़ामुद्दीन हसन कनशापुरी ने तफ़सीर
रग़ाइबुल फ़ुरकान में इस आयत ए िरीमा िी यह तफ़सीर फ़रमाई,
‫(ا ْن ت ُز ْوْل )کراھة زوالھما عن مقرھما و مرکزھما ـ‬

यानी अल्लाह तआला आसमान व ज़मीन िो रोिे हुए है कि


िहीं अपने मकर से हट न जाएं। मकर ही िाफ़ी था कि जा ए फफ़रार
व हराम है, करार सुिून है, मुनाफ़ी ए हरित। कामूस में आता है,
‫قر سکن ـ‬
मगर उन्होंने इस पर इफिफ़ा न किया बल्कि इसिा अत्फफ़ ए
तफ़सीरी मरिज़हुमा ज़ाइद किया, मरिज़ जा ए रक्जज़, रक्जज़ गाडना,
जमाना, यानी आसमान व ज़मीन जहााँ जमे हुए, गडे हुए हैं, वहााँ से न
सरिें ।
नीज़ ग़राइबुल फ़ुरकान में ज़ेर ए कौललही तआला,
‫ی جعل لک ُُم ْاْلرض فِراشا ـ‬
ْ ‫ا ل ِذ‬

7
ज़मीन साकिन है
फ़रमाया,
‫ْل یتم اْلفرتاش علیھا ما لم تکن سا کنة و یکیف یف ذلك ما‬
‫اعطاھا خالقھا و رکز فیھا من المیل الطبییع ایل الوسط الحقییق‬
‫ك الس ٰم ٰو ِت و ْاْلرض ا ْن ت ُز ْوْل ۔‬ ٰ ‫بقدرته و اختیار ہاِن‬
ُ ‫الل ُی ۡم ِس‬
इसी आयत िे नीचे तफ़सीर ए िबीर इमाम फ़़िरुद्दीन राज़ी
में है,
‫اعلم ان کون اْلرض فراشا مشروط بکونھا سا کنة فاْلرض غی‬
‫متحرکة ْل باْلستدارۃ و ْل باْلستقامة و سکون اْلرض لیس‬
‫اْل من اهلل تعایل بقدرته و اختیارہ و لھذا قال اهلل تعایل اِن‬
‫ك الس ٰم ٰو ِت و ْاْلرض ا ْن ت ُز ْوْل ۔ اھ ملتقطا ـ‬ ٰ
ُ ‫الل ُی ۡم ِس‬

कुरआन ए अज़ीम िे वही माना लेने हैं जो सहाबा व ताबाईन


व मुफ़स्सिरीन मोतमदीन ने ललए, इन सबिे ख़िलाफ़ वह माना लेना
खजनिा पता नसरानी साइंस में फमले मुसलमान िो िै से हलाल हो
सिता है। कुरआन ए िरीम िी तफ़सीर कबर राए अशद िबीरा है
खजस पर हुक्म है,
‫فلیتبوأ مقعدہ من النار ۔‬
वह अपना हठिाना जहन्नम में बना ले। यह तो इससे भी बढिर
होगा कि कुरआन ए मजीद िी तफ़सीर अपनी राए से भी नहीं बल्कि
राए नसारा िे मुवाफफ़क वल इयाज़ु कबल्लाहह। यह हुज़ैफ़ा इब्नुल
8
ज़मीन साकिन है
यमान रदद अल्लाहु तआला अन्हम ु ा वह सहाबी जलीलुल कद्र हैं
खजनिो रसूल उल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम ने अपने
असरार ससखाए, उनिा लकब ही साहहब ए ससर ए रसूल उल्लाह
सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम है, अमीरुल मोफमनीन फ़ारूक
ए आज़म रदद अल्लाहु तआला अन्हु उनसे असरार ए हुज़ूर िी बातें
पूछते और अब्दल्ल
ु ाह तो अब्दल्ल
ु ाह हैं, रसूल उल्लाह सल्लल्लाहु
तआला अलैहह वसल्लम ने हुक्म फ़रमाया कि यह जो फ़रमाएं उसे
मज़बूत थामो,

‫تمسکوا بعھد ا بن مسعود ـ‬

और एि हदीस में इरशाद है,


‫رضیت ْلمیت ما ریض لھا ا بن ام عبد و کرھت ْلمیت ما کرہ لھا‬
‫ا بن ام عبد ۔‬

मैंने अपनी उम्मत िे ललए पसंद फ़रमाया जो उसिे ललए


अब्दल्ल
ु ाह इब्न ए मसऊद पसंद िरें और मैंने अपनी उम्मत िे ललए
नापसंद रखा जो उसिे ललए इब्न ए मसऊद नापसंद रखें। और ़िुद
उनिे इल्म ए कुरआन िो इस दजा तरजीह बख़्शी कि इरशाद
फ़रमाया,

‫ الحدیث‬،‫استقرأوا القرآن من اربعة من عبد اهلل ا بن مسعود‬

कुरआन चार शख़्सों से पढो, सबमें पहले अब्दल्ल


ु ाह इब्न ए
मसऊद िा नाम ललया। यह हदीस सहीह बु़िारी व सहीह मुस्लस्लम में

9
ज़मीन साकिन है
ब ररवायत ए अब्दल्ल
ु ाह इब्न ए उमर रदद अल्लाहु तआला अन्हम
ु ा
हज़रत अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम है। और अजाइब
ए नामाए इलाहीया से यह कि आयत ए िरीमा,

‫ا ْن ت ُز ْوْل‬

िी यह तफ़सीर और यह कि फमहवर पर हरित भी मौखजब ए


ज़वाल है चे जाए हरित अलल मदार, हमने दो सहाबी जलीलुल कद्र
रदद अल्लाहु तआला अन्हम ु ा से ररवायत िी, दोनों िी कनस्बत हुज़ूर
अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम िा इरशाद है कि यह जो
बात तुमसे बयान िरें उसिी तसदीक िरो। दोनों हदीसें जामेअ
कतफमिज़ी शरीफ़ िी हैं, अव्वल,

‫ما حدثکم ا بن مسعود فصدقوہ ۔‬

दव
ु म
‫ما حدثکم حذیفة فصدقوہ ۔‬

अब यह तफ़सीर इन दोनों हज़रात िी नहीं बल्कि रसूल उल्लाह


सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम िा इरशाद है कि इसे मानो,
इसिी तसदीक िरो।
‫الحمد هلل تعایل رب العالمنی ـ‬
हमारे माना िी तो यह अज़मत ए शान है कि मुफ़स्सिरीन से
साकबत, ताबाईन से साकबत, अखजल्ला ए सहाबा ए किराम से साकबत,
़िुद हुज़ूर सय्यिदल
ु अनाम अलैहह अफ़ज़लुस सलातो विलाम से
10
ज़मीन साकिन है
इसिी तसदीक िा हुक्म। और अनकरीब हम कब फ़ज़्ललहह तआला
और बहुत आयात और सदहा अहादीस और इज्मा ए उम्मत और ़िुद
इकरार ए मुजाहहद ए िबीर से इस माना िी हकीकत और ज़मीन िा
सुिून ए मुतलक साकबत िरेंगे। व बिल्लाहित तौफ़ीक़।
आपने जो माना ललए क्या किसी सहाबी, किसी ताबई, किसी
इमाम, किसी तफ़सीर या जाने दीखजए छोटी सी छोटी किसी इस्लामी
आम िु तुब में ददखा सिते हैं कि आयत िे माना यह हैं कि ज़मीन
कगद़ ए आफ़ताब दौरा िरती है, अल्लाह तआला उसे ससफ़़ इतना रोिे
हुए है कि इस मदार से बाहर न जाए लेकिन उस पर उसे हरित िरने
िा अम्र फ़रमाया है। हाशा ललल्लाह किसी इस्लामी ररसाला, पचे,
रुक़्का से इसिा पता नहीं दे सिते ससवा साइंस ए नसारा िे । आगे
आप इंसाफ़ िर लेंगे कि मआनी कुरआन वह ललए जाएं या यह।
मुहहब्बा, मु़िललसा! वह िौन सा नस है खजसमें िोई तावील नहीं गढ
सिते यहााँ ति कि काददयानी िाफफ़र ने,
‫و خاتم الن ِب ِنی‬
में तावील गढ दी कि ररसालत िी अफ़ज़ललयत उन पर ़िि
हो गई, उन जैसा िोई रसूल नहीं। नानोतवी ने गढ दी कि वह नबी
कबज़्जात हैं और नबी कबल अज़़, और मौसूफ़ कबल अज़़ िा ककिा
मौसूफ़ कबज़्जात पर ़िि हो जाता है उनिे बाद भी अगर िोई नबी
हो तो ़िि ए नुबूवत िे ख़िलाफ़ नहीं। हत्ता कि यूाँही िोई मुशररि
ला इलाहा इल्लल्लाह में तावील िर सिता है कि आला में हस्र है
यानी अल्लाह िे बराबर िोई ़िुदा नहीं अगरचे उससे छोटे बहुत से
हों। जैसे हदीस शरीफ़ में है,
11
ज़मीन साकिन है

‫ْل فیت اْل عىل ْل سیف اْل ذو الفقار ۔‬

दस
ू री हदीस
‫ْل وجع اْل وجع العنی و ْل ھم اْل ھم الدین ـ‬

दद़ नहीं मगर आाँख िा दद़ और परीशानी नहीं मगर कज़़ िी


परीशानी। ऐसी तावीलों पर ़िुश न होना चाहहए बल्कि जो तफ़सीर
मासूर है उसिे हुज़ूर सर पर रख ददया जाए और जो मसअला तमाम
मुसलमानों में मशहूर व मकबूल है मुसलमान उसी पर ऐकतकाद लाए।
मुहहब्बी मु़िललसी! अल्लाह अज़्जा व जल्ल ने आपिो पक्का
मुस्तककल सुन्नी किया है, आप जानते हैं कि आपसे पहले राफ़ज़ी जो
मुरतद न थे िाहे से राफ़ज़ी हुए। क्या अल्लाह या कुरआन या रसूल
या कयामत वग़ैरहा ज़रुररयात ए दीन से किसी िे मुंकिर थे। हरकगज़
नहीं, उन्हें इसने राफ़ज़ी किया कि सहाबा ए किराम रदद अल्लाहु
तआला अन्हम ु िी अज़मत न िी। मुहहब्बा! ददल िो सहाबा िी
अज़मत से ममलू िर लेना फ़ज़़ है, उन्होंने कुरआन ए िरीम साहहब ए
कुरआन सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम से पढा, हुज़ूर से उसिे
मआनी सीखे, उनिे इरशाद िे आगे अपनी फ़हम नाककस िी। वह
कनस्बत समझनी भी ज़ुल्म है जो एि अल्लामा मुतबह्हर िे हुज़ूर
किसी जाहहल गंवार बे तमीज़ िो। मुहहब्बा! सहाबा और ़िुसूसन
हुज़ैफ़ा व अब्दल्ल
ु ाह इब्न ए मसऊद जैसे सहाबा िी यह क्या अज़मत
हुई अगर हम ़ियाल िरें कि जो माना ए कुरआन ए अज़ीम उन्होंने
समझे ग़लत हैं, हम जो समझे वह सहीह हैं। मैं आपिो अल्लाह अज़्जा
12
ज़मीन साकिन है
व जल्ल िी पनाह में देता हूाँ इससे कि आपिे ददल में ऐसा ़ितरा भी
गुज़रे।
‫الر ِح ِم ْنی ـ‬ ُٰ ‫ف‬
ٰ ‫الل خ ْی ٰح ِفظا و ُھو ا رح ُم‬
मैं उम्मीद ए वाससक रखता हूाँ कि इसी कद्र इज्माल ए जमील
आपिे इंसाफ़ ए जज़ील िो बस। अब कदर ए तफ़सील भी अज़़
िरूं।
(1) ज़वाल िे अस्ल माना सरिना, हटना, जाना, हरित िरना,
बदलना हैं। कामूस में है,
‫الزوال الذھاب و اْلستحالة ۔‬
उसी में है,
‫کل ما تحول فقد حال و استحال ۔‬
एि नुस्ट़्िा में है,
‫کل ما تحرك او تغی ۔‬
यूाँही उबाब में है,
‫تحول او تحرك ـ‬
ताजुल उरूस में है,
‫ازال اهلل تعایل زواله ای اذھب اهلل حرکته و زال زواله ای ذھبت‬
‫حرکته ۔‬

13
‫ै‪ज़मीन साकिन ह‬‬
‫‪कनहाया इब्न ए असीर में है,‬‬
‫یف حدیث جندب الجھن و اهلل لقد خالطه سھم و لو کان زائلة‬
‫لتحرك الزائلة کل شیئ من الحیوان یزول عن مکانه و ْل‬
‫یستقر و کان ھذا المریم قد سکن نفسه ْل یتحرك لئال یحس‬
‫به فیجھز علیه ـ‬

‫े‪(अ) देखो ज़वाल ब माना हरित है और कुरआन ए अज़ीम न‬‬


‫‪आसमान व ज़मीन से उसिी नफ़ी फ़रमाई तो हरित ए ज़मीन व‬‬
‫‪हरित ए आसमान दोनों बाकतल हुईं।‬‬
‫ै‪(ब) ज़वाल जाना और बदलना है, हरित फमहवरी में बदलना ह‬‬
‫‪और मदार पर हरित में जाना भी तो दोनों िी नफ़ी हुई।‬‬
‫ंे‪(ज) नीज़ कनहाया व दरु ए नसीर इमाम जलालुद्दीन सुयूती म‬‬
‫‪है,‬‬
‫الزو یل اْلنزعاج بحیث ْل یستقر عىل المکان و ھو و الزوال‬
‫بمعن واحد ـ‬
‫‪कामूस में है,‬‬
‫زعجه و اقلقه و قلعه من مکانه کازعجه فانزعج ۔‬
‫‪ललसान में है,‬‬
‫اْلزعاج نقیض اْلقرار ۔‬
‫‪ताज में है,‬‬

‫‪14‬‬
ज़मीन साकिन है
‫قلق الشیئ قلقا و ھوان ْل یستقر یف مکان واحد ۔‬
मुफ़रदात ए इमाम राकग़ब में है,
‫قر یف مکانه یقر قرارا ثبت ثبوتا جامدا واصله من القر و ھو‬
‫الربد و ھو یقتض السکون و الحر یقتض الحركة ـ‬
कामूस में है,
‫قر با لمکان ثبت و سکن کاستقر ۔‬
देखो ज़वाल इंज़आज है और इंज़आज कलक मुकाकबल ए
करार और सुिून हो तो ज़वाल मुकाकबल ए सुिून है और मुकाकबल
ए सुिून नहीं मगर हरित तो हरित ज़वाल है। कुरआन ए अज़ीम
आसमान व ज़मीन िे ज़वाल से इंिार फ़रमाता है, ला जरम उनिी
हर गूना हरित िी नफ़ी फ़रमाता है।

(द) सराह में है,


‫زائله جنبیدہ و روندہ و آئندہ ۔‬
ज़मीन अगर फमहवर पर हरित िरती जंबीदा होती और मदार
पर तो आइंदा व रकविंदा भी बहरहाल ज़ाइला होती और कुरआन ए
अज़ीम उसिे ज़वाल िो बाकतल फ़रमाता है, ला जरम उससे हर नौए
हरित ज़ाइल।
(2) िरीमा
‫و اِ ْن کان مک ُْر ُھ ْم لِت ُز ْول ِم ْن ُه الْ ِجبا ُل ـ‬

15
ज़मीन साकिन है
उनिा मिर इतना नहीं खजससे पहाड जगह से टल जाएं या
अगरचे उनिा ऐसा बडा हो कि खजससे पहाड टल जाएं। यह कतअन
हमारी ही मुअिद और हर गूना हरित ए खजबाल िी नफ़ी है।
(अ) हर आककल बल्कि ग़बी ति जानता है कि पहाड साकबत
साकिन व मुसतकर एि जगह जमे हुए हैं खजनिो असलन जुंकबश
नहीं। तफ़सीर इनायतुल िाज़ी में है,
‫ثبوت الجبل یعرفه الغیب و الذک ۔‬
कुरआन ए अज़ीम में उनिो रवासी फ़रमाया, रासी एि जगह
जमा हुआ पहाड, अगर एि उंगल भी सरि जाएगा कत्अन ज़ालल
जबल साददक आएगा न यह कि तमाम दन ु या में लुढिता फिरे और
ज़ालुल जबल न िहा जाए, सबात व करार साकबत रहे कि अभी दन ु या
से आख़िरत िी तरफ़ गया ही नहीं ज़वाल िै से हो गया। अपनी
मनकूला इबारत ए जलालैन देखखए पहाड िे इसी सबात व
इसकतकरार पर शराए इस्लाम िो उससे तशबीह दी खजनिा ज़रा भर
हहलाना मुमकिन नहीं।
(ब) इसी इबारत ए जलालैन िा आख़िर देखखए कि तफ़सीर ए
दवु म पर यह आयत,
‫آیہ تخ ُِر الْ ِجبا ُل ھدا‬

िे मुनाससब है यानी उनिी मलऊन बात ऐसी सख़्त है खजससे


करीब था कि पहाड ढहिर कगर पडते। यूाँही मुआललमुत तन्ज़ील में है,
‫و ھو معن قوله تعایل و تخ ُِر الْ ِجبا ُل ھدا ۔‬

16
ज़मीन साकिन है
यह मज़मून अबू उबैद व इब्न ए जरीर व इब्नुल मुंखज़र व इब्न ए
अबी हाकतम ने अब्दल्ल
ु ाह इब्न ए अब्बास रदद अल्लाहु तआला अन्हम ु ा
से ररवायत किया नीज़ इब्न ए जरीर ददहाि से रावी हुए

‫کقوله تعایل و تخ ُِر الْ ِجبا ُل ھدا ۔‬

इसी तरह कतादा शाकगद़ ए अनस रदद अल्लाहु तआला अन्हु


से ररवायत किया। ज़ाहहर है कि ढहिर कगरना उस जंगल से भी उसे
न कनिाल देगा खजसमें था न कि दन ु या से, हााँ जमा हुआ साकिन
मुसतकर न रहेगा तो इसी िो ज़वाल से ताबीर फ़रमाया और इसी िी
नफ़ी ज़मीन से फ़रमाई तो वह ज़रूर जमी हुई साकिन मुसतकर है।

(ज) रब अज़्जा व जल्ल ने सय्यिदन


ु ा मूसा अला नबीयीनल
िरीम व अलैहहस सलातो विलाम से फ़रमाया,

ْ ‫ن و ل ٰ ِک ِن ا نْ ُظر اِیل الْجب ِل ف ِا ِن‬


‫استقر مکان ُه فس ْوف‬ ْ ِ ‫ل ْن ت ٰرى‬
ْ ِ ‫ت ٰرى‬
‫ن۔‬

तुम हरकगज़ मुझे न देखोगे हााँ पहाड िी तरफ़ देखो अगर वह


अपनी जगह ठहरा रहे तो अनकरीब तुम मुझे देख लोगे। फिर फ़रमाया,

‫فلما تج ٰىل ربُ ُه لِلْجب ِل جعل ُه دکا و خر ُم ْو ٰس ص ِعقا ۔‬

जब उनिे रब ने पहाड पर तजल्ली फ़रमाई उसे टु िडे िर ददया


और मूसा ग़श खािर कगरे। क्या टु िडे होिर दन
ु या से कनिल गया या
एशशया या उस मुि से। इस माना पर तो हरकगज़ जगह से न टला,
हााँ वह ़िास महल खजसमें जमा हुआ था वहााँ न जमा रहा तो मालूम
17
ज़मीन साकिन है
हुआ इसी कदर अदम ए इसकतकरार िो िाफ़ी है और ऊपर गुज़रा कि
अदम ए इसकतकरार ऐन ज़वाल है, ज़मीन भी जहााँ जमी हुई है वहााँ
से सरिे तो बेशि ज़ाइला होगी अगरचे दन
ु या या मदार से बाहर न
जाए।

(द) इस आयत ए िरीमा िे नीचे तफ़सीर इरशादल


ु अक़्लुस
सलीम में है,
‫و ان کان مکرھم یف غایة المتانة و الشدۃ معد اْلزالة الجبال‬
‫عن مقارھا ۔‬
नीशापुरी में है,
‫ازالة الجبال عن اما کنھا ـ‬
़िाखज़न में है,
‫تزول عن اما کنھا ۔‬
िश्शाफ़ में है,
‫تنقلع عن اما کنھا ۔‬
मदाररि में है,
‫تنقطع عن اما کنھا ۔‬

इसी िे फमस्ल आपने िमालैन से नकल किया, यहााँ भी मिान


व मकर से कत्अन वही करार है जो िरीमा

18
ज़मीन साकिन है
‫استقر مکان ُه‬
ْ ‫فاِ ِن‬
में था, इरशाद िा इरशाद मकाररहा जाहा ए करार और
िश्शाफ़ िा लफ्जज़ तंकललओ ़िास काकबल ए ललहाज़ है कि उखड
जाने ही िो ज़वाल बताया।
(ह) सईद इब्न ए मंसूर अपने सुनन और इब्न ए अबी हाकतम
तफ़सीर में हज़रत अबू माललि गज़वान ग़फ़्फारी िू फ़ी उस्ताज़ ए
इमाम सदी िबीर व तलमीज़ हज़रत अब्दल्ल ु ाह इब्न ए अब्बास रदद
अल्लाहु तआला अन्हम ु ा से रावी,
‫و اِ ْن کان مک ُْر ُھ ْم لِت ُز ْول ِم ْن ُه الْ ِجبا ُل قال تحرکت ۔‬

उन्होंने साफ़ तसरीह िर दी कि ज़वाल ए खजबाल उनिा हरित


िरना जुंकबश खाना है। इसी िी ज़मीन से नफ़ी है व ललल्लाहहल
हि।
(3) ऊपर गुज़रा कि ज़वाल मुकाकबल ए करार व सबात है और
करार व सबात हकीकी सुिून ए मुतलक है, दरबारा ए करार इबारत ए
इमाम राकग़ब गुज़री और कामूस में है,
‫المثبت کمکرم من ْلحراك به من المرض و بکسر الباء الذی‬
‫ثقل فلم یربح الفراش و داء ثبات بالضم معجز عن الحرکة ۔‬

मगर तविुअन करार व सबात एि हालत पर बका िो िहते


हैं अगरचे उसमें सुिून ए मुतलक न हो तो उसिा मुकाकबल ज़वाल
इसी हालत से इंफफ़साल होगा यूाँही मकर व मुसतकर व मिान हर
खजस्म िे ललए हकीकीही वह सतह या बोद ए मुजऱद या मौहूम है जो
19
ज़मीन साकिन है
जमीअ जवाकनब से उस खजस्म िो हावी और उससे मुलाससक है यानी
उलमा ए इस्लाम िे नज़दीि वह फ़ज़ा ए मुत्तससल खजसे यह खजस्म
भरे हुए हैं ज़ाहहर है कि वह दबने, सरिने से बदल गई ललहाज़ा इस
हरित िो हरित ए ईनीया िहते हैं यानी खजससे दम ब दम ईं कि
मिान व जाए िा नाम है बदलता है यही खजस्म िा मिान ए ़िास
है और इसी में करार व सबात ए हकीकी है इसिे ललए यह भी ज़रुर है
कि वज़ा भी न बदले, िु रह कि अपनी जगह काइम रहिर अपने
फमहवर पर घूमे मिान नहीं बदलता मगर उसे कार व सबात व साकिन
न िहेंगे बल्कि ज़ाइल व हाइल व मुतहररिि फिर इसी तविुअ िे तौर
पर बैत बल्कि दार बल्कि मुहल्ले बल्कि शहर बल्कि िसीर मुिो िे
हावी हहिा ए ज़मीन फमस्ल एशशया बल्कि सारी ज़मीन बल्कि तमाम
दनु या िो मकर व मुसतकर व मिान िहते हैं,

‫رض ُم ْستقر و متاع اِ ٰیل ِح ْنی ـ‬


ِ ‫قال تعایل و لک ُْم ِیف ْاْل‬
और उससे जब ति जुदाई न हो उसे करार व कयाम बल्कि
सुिून से ताबीर िरते हैं अगरचे हज़ारों हरिात पर मुशतमल हो व
ललहाज़ा िहेंगे कि मोती बाज़ार बल्कि लाहौर बल्कि पंजाब बल्कि
हहिंदस्त
ु ान बल्कि एशशया बल्कि ज़मीन हमारे मुजाहहद ए िबीर िा
मसिन है वह उनमें सुिूनत रखते हैं, वह उनिे साकिन हैं हालांकि हर
आककल जानता है कि सुिून व हरित मुताबाइन मगर यह माना
मजाज़ी हैं ललहाज़ा जा ए एतराज़ नहीं। ला जरम महल ए नफ़ी में
उनिा मुिाकबल ज़वाल भी उन्हीं िी तरह मजाज़ी व तविो है और
वह न होगा जब ति उनसे इंकतकाल न हो, िु फ़्फार िी वह ककस्म कि
20
ज़मीन साकिन है
ْ ‫ما لک ُْم م‬
‫ِن زوال ـ‬

इसी माना पर थी, यह कसम न खाते थे कि हम साकिन ए


मुतलक हैं चलते फिरते नहीं, न यह कि हम एि शहर या मुि िे
पाबंद हैं उससे मुंतककल नहीं हो सिते बल्कि दन ु या िी कनस्बत कसम
खाते थे कि हमें यहााँ से आख़िरत में जाना नहीं,
ُ ‫اِ ْن ِه اِْل حیا ُتنا‬
‫الد ْنیا ن ُم ْو ُت و نحیا و ما نح ُن ِبم ْب ُع ْوثِ ْنی ـ‬

मौला तआला फ़रमाता है,

‫الل م ْن ی ُم ْو ُت ـ‬
ُٰ ‫ث‬ ِ ُ ٰ ‫و اقْس ُم ْوا ِب‬
ُ ‫الل جھد ا ْیما نِ ِھ ْم ْل ی ْبع‬
ला जरम तीसरी आयत ए िरीमा में ज़वाल से मुराद दन ु या से
आख़िरत में जाना है, न यह कि दन
ु या में उनिा चलना फिरना ज़वाल
नहीं कत्अन हकीकी ज़वाल है खजसिी सनदें ऊपर सुन चुिे और
अज़ीम शाफ़ी बयान आगे आता है मगर यहााँ उसिा खज़क्र है खजसिी
वह कसम खाते थे और वह न था मगर दन ु या से इंकतकाल माना
मजाज़ी िे ललए करीना दरिार होता है यहााँ करीना उनिे यही
अकवाल ए कब ऐकनही हैं बल्कि ़िुद उसी आयत ए सद्र में करीना
सरीहा मकाललया मौजूद कि रोज़ ए कयामत ही िे सवाल व जवाब
िा खज़क्र फ़रमाता है,

َ‫ل ال ِذیَنَ ظل مموَا ربنا‬ َ‫اب فیقموَ م‬ ‫وَ ا نَ ِذ َِر الناسَ یوَمَ یات ِ م‬
َ ‫ِْیَ َالعذ م‬
َ‫الر مسلَ اوَ لم‬
‫ع م‬ َ ِ ‫ل اجلَ ق ِر یَبَ نم ِجبَ دعوتكَ وَ نت ِب‬َ ٰ ِ‫اخِرناَ ا‬
‫ل ما لکممَ مِنَ زوالَ ـ‬
َ‫تکمونموَا اقسم متمَ مِنَ قبَ م‬
21
ज़मीन साकिन है
लेकिन िरीमा
‫ك الس ٰم ٰو ِت و ْاْلرض ا ْن ت ُز ْوْل ـ‬ ٰ ‫اِن‬
ُ ‫الل ُی ْم ِس‬

में िोई करीना नहीं तो माना मजाज़ी लेना किसी तरह जाइज़
नहीं हो सिता बल्कि कत्अन ज़वाल अपने माना ए हकीकी पर रहेगा
यानी करार व सबात व सुिून ए हकीकी िा छोडना, इसिी नफ़ी है
तो ज़रूर सुिून िा इस्बात है एि जगह माना मजाज़ी में इस्तेमाल
देखिर दस ू री जगह कबला करीना मजाज़ मुराद लेना हरकगज़ हलाल
नहीं।

(4) नहीं नहीं कबला करीना नहीं बल्कि ख़िलाफ़ ए करीना, यह


और सख़्त तर है कि िलाम उल्लाह में पूरी तहरीफ़ ए मानवी िा पहलू
देगा, रब अज़्जा व जल्ल ने
‫ك‬
ُ ‫ُی ْم ِس‬
फ़रमाया है और इमसाि रोिना, थामना, बंद िरना है व
ललहाज़ा जो ज़मीन िे पानी िो बहने न दे रोि रखे उसे मसि और
मसाि िहते हैं अनहार व अबहार िो नहीं िहते हालांकि उनमें भी
पानी िी हरित वहीं ति होगी जहााँ ति अहसनुल ़िाललकीन जल्ल
व अला ने उसिा इमिान ददया है। कामूस में है,
‫امسکه حبسه المسك محرکة الموضع یمسك الماء کالمساك‬
‫کسحاب ـ‬

22
ज़मीन साकिन है
यूाँ तो दन
ु या भर में िोई हरित िभी भी ज़वाल न हो कि जहााँ
ति अहसनुल ़िाललकीन तआला ने इमिान ददया है उससे आगे नहीं
बढ सिती।
(5) अगर इन माना िो मजाज़ी न लीखजए बल्कि िहहए कि
ज़वाल आम है मिान व मुसतकर हकीकी ़िास से सरिना और मौका
ए आम और मूकतन अअम और अअम अज़ अअम से जुदा होना सब
उसिे फ़द़ हैं तो हर एि पर उसिा इतलाक हकीकत है जैसे ज़ैद व
अम्र व बक्र वग़ैरहुम किसी फ़द़ िो इंसान िहना तो अब भी कुरआन
ए िरीम िा मफ़ाद ज़मीन िा वही सुिून ए मुतलक होगा न कि
अपने मदार से बाहर न जाना।
‫ت ُز ْوْل‬
फ़ेल है और महल ए नफ़ी में वाररद है और इल्म ए उसूल में
मुसऱह है कि फ़ेल कुव्वत ए निरा मे है और निरा हय्यिज़ नफ़ी में
आम होता है तो माना ए आयत यह हुए कि आसमान व ज़मीन िो
किसी ककस्म िा ज़वाल नहीं, न मौका ए आम से न मुसतकर ए
हकीकी ़िास से और यही सुिून ए हकीकी है व ललल्लाहहल हि।
यही वजह है कि हमारे मुजाहहद ए िबीर िो अपनी इबारत में
हर जगह कै द बढानी पडी "ज़मीन िा अपने अमािन से ज़ाइल हो
जाना उसिा ज़वाल होगा" ज़ाइल हो जाना कत्अन मुतलकन ज़वाल
है, ज़ाइल हो जाना ज़वाल िा तरखजमा ही तो है, मिान ए ़िास से
हो ़िवाह अमािन से मगर अव्वल िे इ़िराज िो इस कै द िी हाजत
होती तो यूाँही फ़रमाया "ज़मीन िा ज़वाल उसिे अमािन से" फिर
फ़रमाया "खजन अमािन में अल्लाह तआला ने उसिो इमसाि ददया
23
ज़मीन साकिन है
है उससे बाहर सरि नहीं सिती" फिर फ़रमाया "अपने मदार में
इमसाि िदा शुदा है उससे ज़ाइल नहीं हो सिती" और नफ़ी िी
जगह फ़रमाया "हज़रत अब्दल्ल ु ाह इब्न ए मसऊद रदद अल्लाहु तआला
अन्हु ने आसमान िे सुिून फ़ी मिाकनही िी तसरीह फ़रमा दी मगर
ज़मीन िे बारे में ऐसा नहीं फ़रमाया" यहााँ जमा अमािन िा ज़ाहहर
िर ददया मगर रब अज़्जा व जल्ल ने तो उनमें िोई कै द न लगाई,
मुतलक
‫ك‬
ُ ‫یُ ْم ِس‬
फ़रमाया है और मुतलक
‫ا ْن ت ُز ْوْل ۔‬
अल्लाह आसमान व ज़मीन हर एि िो रोिे हुए है कि सरिने
न पाए, यह न फ़रमाया कि उसिे मदार में रोिे हुए है, यह न फ़रमाया
कि हर एि िे ललए अमािन ए अदीदा हैं, उन अमािन से बाहर न
जाने पाए। तो इसिा बढाना िलाम ए इलाही में अपनी तरफ़ से
पैवंद लगाना होगा अज़ पेश ़िेश कुरआन ए अज़ीम िे मुतलक िो
मुकैिद, आम िो मु़ििस बनाना होगा और यह हरकगज़ रवा नहीं।
अहले सुन्नत िा अकीदा है जो उनिी िु तुब ए अकाइद में मुसऱह है
कि
‫النصوص تحمل عىل ظواھرھا ـ‬
बल्कि तमाम दलालतों िा बडा िाटि यही है कि बतौर ए
़िुद नुसूस िो ज़ाहहर से िे रें, मुतलक िो मुकैिद, आम िो मु़ििस
िरें।
24
ज़मीन साकिन है
ْ ‫ما لک ُْم م‬
‫ِن زوال‬
िी त़िसीस ए वाज़ेह से
‫ا ْن ت ُز ْوْل‬
िो भी मु़ििस िर लेना इसिी नज़ीर यही है कि

ْ ‫الل ع ٰىل ک ُ ِل‬


‫َشء ق ِد ْیر‬ ٰ ‫اِن‬

िी त़िसीस देखिर

ْ ‫الل ِبک ُ ِل‬


‫َشء علِ ْیم‬ ٰ ‫اِن‬

िो भी मु़ििस मान लें कि खजस तरह वहााँ ज़ात व ससफ़ात


व मुहालात ज़ेर ए कुदरत नहीं यूाँही मुआमला साफ़ हो गया कि ज़ात
व ससफ़ात व मुहालात िा मआज़ अल्लाह इल्म भी नहीं। ज़्यादा
तशफ़्फी कबहम्दिहह तआला नम्बर 8 में आती है खजससे वाज़ेह हो
जाएगा कि अल्लाह व रसूल व सहाबा व मुस्लस्लमीन िे िलाम में यहााँ
माना ़िास महल ए कनज़ाअ में ज़वाल से मुतलकन एि जगह से
सरिना मुराद हुआ है अगरचे अमािन मुएिना से बाहर न जाए या
ज़वाल ए िु फ़्फार िी तरह दन ु या ख़्वाह मदार छोडिर अलग भाग
जाना।
‫فانتظر ـ‬
(6) ला जरम वह खजन्होंने ़िुद साहहब ए कुरआन सल्लल्लाहु
तआला अलैहह वसल्लम से कुरआन ए िरीम पढा, ़िुद हुज़ूर ए

25
ज़मीन साकिन है
अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम से उसिे मआनी सीखे
उन्होंने आयत ए िरीमा िो हर गूना ज़वाल िी नाफ़ी और सुिून ए
मुतलक हकीकी िी मुस्बत बताया। सईद इब्न ए मंसूर व अब्द इब्न ए
हुमैद व इब्न ए जरीर व इब्नुल मुंखज़र ने हज़रत शकीक इब्न सलमा से
कि ज़माना ए ररसालत पाए हुए थे ररवायत िी और हदीस इब्न ए जरीर
ब ररजाल ए सहीहैन बु़िारी व मुस्लस्लम है,

‫حدثنا ا بن بشار ثنا عبد الرحمن ثنا سفنی عن اْلعمش عن‬


‫ایب وائل قال جاء رجل ایل عبد اهلل ریض اهلل تعایل عنه فقال‬
‫من ا ین جئت قال من الشام فقال من لقیت قال لقیت کعبا‬
‫موت تدور عىل منکب‬ ٰ ‫فقال ما حدثك کعب قال حدثن ان‬
ٰ ‫الس‬
‫ملك قال فصدقته او کذبته قال ما صدقته و ْل کذبته قال‬
‫لوددت انك افتدیت من رحلتك الیه براحلتك و رحلھا و کذب‬
‫ك الس ٰم ٰو ِت و ْاْلرض ا ْن ت ُز ْوْل و‬ ٰ ‫کعب ان اهلل یقول اِن‬
ُ ‫الل ُی ْم ِس‬
‫ِن بع ِدہ ـ زاد غی ا بن جریر‬
ْ ‫ِن احد م‬
ْ ‫لئ ِْن زالتا اِ ْن ا ْمسک ُھما م‬
‫و کیف بھا زواْل ان تدورا ۔‬

एि साहहब हज़रत सय्यिदन ु ा अब्दल्ल


ु ाह इब्न ए मसऊद रदद
अल्लाहु तआला अन्हु िे हुज़ूर हाखज़र हुए, फ़रमाया, िहााँ से आए।
अज़़ िी, शाम से। फ़रमाया, वहााँ किस से फमले। अज़़ िी, िाब से।
फ़रमाया, िाब ने तुमसे क्या बात िी। अज़़ िी, यह िहा कि
आसमान एि फ़ररशते िे शाने पर घूमते हैं। फ़रमाया, तुमने इसमें
26
ज़मीन साकिन है
िाब िी तस्दीक िी या तिज़ीब। अज़़ िी, िु छ नहीं (यानी खजस
तरह हुक्म है कि जब ति अपनी किताब ए िरीम िा हुक्म न मालूम
हो अहले किताब िी बातों िो न सच जानों न झूट) हज़रत अब्दल्ल ु ाह
इब्न ए मसऊद रदद अल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया, िाश तुम अपना
ऊंट और उसिा िु जावा सब अपने इस सफ़र से छुटिारे िो दे देते,
िाब ने झूट िहा, अल्लाह तआला फ़रमाता है, बेशि अल्लाह
तआला आसमानों और ज़मीन िो रोिे हुए है कि सरिने न पाएं और
अगर वह हटें तो अल्लाह िे ससवा उन्हें िौन थामे, घूमना उनिे सरि
जाने िो बहुत है। नीज़ मुहम्मद तबरी ने ब सनद ए सहीह बर उसूल ए
हनफफ़या ब ररजाल ए बु़िारी व मुस्लस्लम हज़रत इमाम अबू हनीफ़ा िे
उस्ताज़ुल उस्ताज़ इमाम अजल्ल इब्राहीम ऩि्ई से ररवायत िी,
‫حدثنا جریر عن مغیۃ عن ابراہیم قال ذھب جندب البجىل‬
‫ایل کعب اْلحبار فقدم علیه ثم رجع فقال له عبد اهلل حدثنا‬
‫ما حدثك فقال حدثن ان السماء یف قطب کقطب الرحا و‬
‫القطب عمود عىل منکب ملك قال عبد اهلل لوددت انك افتدیت‬
‫رحلتك بمثل راحلتك ثم قال ماتنتکت الیھودیة یف قلب عبد‬
‫ك الس ٰم ٰو ِت و ْاْلرض ا ْن ت ُز ْوْل‬ ٰ ‫فکادت تفارقه ثم قاْل اِن‬
ُ ‫الل ُی ْم ِس‬
‫۔ کیف بھا زواْل ان تدورا ۔‬

जुंदब
ु बजली िाब अहबार िे पास जािर वापस आए, हज़रत
अब्दल्ल
ु ाह रदद अल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया, िहो िाब ने तुमसे
क्या िहा। अज़़ िी, िहा कि आसमान चक्की िी तरह एि िीली
27
ज़मीन साकिन है
में है और िीली एि फ़ररश्ते िे िांधे पर है। हज़रत अब्दल्ल
ु ाह ने
फ़रमाया, मुझे तमन्ना हुई कि तुम अपने नाका िे बराबर माल देिर
इस सफ़र से छूट गए होते, यहूददयत िी ़िराश खजस ददल में लगती
है फिर मुश्किल ही से छूटती है, अल्लाह तो फ़रमा रहा है बेशि
अल्लाह आसमानों और ज़मीन िो थामे हुए है कि न सरिें , उनिे
सरिने िो घूमना ही िाफ़ी है।
अब्द इब्न ए हुमैद ने कतादा शाकगद़ ए हज़रत ए अनस रदद
अल्लाहु तआला अन्हु से ररवायत िी,
‫ان کعبا کان یقول ان السماء تدور عىل نصب مثل نصب الرحا‬
ٰ ‫فقال حذیفة بن الیمان ریض اهلل تعایل عنھما کذب کعب اِن‬
‫الل‬
‫ك الس ٰم ٰو ِت و ْاْلرض ا ْن ت ُز ْوْل ۔‬
ُ ‫ُی ْم ِس‬
िाब िहा िरते कि आसमान एि िीली पर दौरा िरता है
जैसे चक्की िी िीली। इस पर हुज़ैफ़ा इब्नुल यमान रदद अल्लाहु
तआला अन्हु ने फ़रमाया िाब ने झूट िहा, बेशि अल्लाह आसमानों
और ज़मीन िो रोिे हुए है कि जुंकबश न िरें। देखो इन अखजल्ला ए
सहाबा इिराम रदद अल्लाहु तआला अन्हम ु ने मुतलक हरित िो
ज़वाल माना और इस पर इंिार फ़रमाया और काइल िी तिज़ीब
िी और इसे बकाया ए ़ियालात ए यहूददयत से बताया, क्या वह
इतना न समझ सिते थे कि हम िाब िी नाहक तिज़ीब क्यों
फ़रमाएं, आयत में तो ज़वाल िी नफ़ी फ़रमाई है "और उनिा यह
फिरना चलना अपने अमािन में है जहााँ ति अहसनुल ़िाललकीन
तआला ने उनिो हरित िा इमिान ददया है वहााँ ति उनिा हरित

28
ज़मीन साकिन है
िरना उनिा ज़वाल न होगा" मगर उनिा ज़हन मुबारि इस माना ए
बाकतल िी तरफ़ न गया, न जा सिता था बल्कि उसिे इब्ताल ही
िी तरफ़ गया और जाना ज़रुर था कि अल्लाह तआला ने मुतलकन
ज़वाल िी नफ़ी फ़रमाई है न कि ़िास ज़वाल अकनल मदार िी तो
उन्होंने रवा न रखा कि िलाम ए इलाही में अपनी तरफ़ से यह पैवंद
लगा लें, ला जरम उस पर रद फ़रमाया और इस कदर शदीद व अशद
फ़रमाया व ललल्लाहहल हि।

तम्बीह : िाब अहबार ताबाईन ए अ़ियार से हैं, ख़िलाफ़त ए


फ़ारूकी में यहूदी से मुसलमान हुए, िु तुब ए साकबका िे आललम थे,
अहले किताब िी अहादीस अक्सर बयान िरते, उन्हीं में से यह ़ियाल
था खजसिी तग़लीत इन अिाकबर सहाबा ने कुरआन ए अज़ीम से
फ़रमा दी तो कज़बा िाब िे यह माना हैं कि िाब ने ग़लत िहा न
कि मआज़ अल्लाह कस्दन झूट िहा। कज़बा ब माना अ़िता मुहावरा
ए हहजाज़ है और ़िराश ए यहूददयत ब मुश्किल छूटने से यह मुराद कि
उनिे ददल में इल्म ए यहूद भरा हुआ था, वह तीन ककस्म है, बाकतल
सरीह व हक सरीह और मशिू ि कि जब ति अपनी शरीअत से
उसिा हाल न मालूम हो, हुक्म है कि उसिी तस्दीक न िरो, मुमकिन
कि उनिी तहरीफ़ात या ़िुराफ़ात से हो, न तिज़ीब िरो, मुमकिन
कि तौरेत या तालीमात से हो, इस्लाम लािर ककस्म ए अव्वल िा
हफ़़-हफ़़ कत्अन उनिे ददल से कनिल गया, ककस्म ए दव ु म िा इल्म
और मुसज्जल हो गया, यह मसअला ककस्म ए सुवम बकाया ए इल्म
ए यहूद से खजसिे बुतलान पर आगाह न होिर उन्होंने बयान किया
और सहाबा ए किराम ने कुरआन ए अज़ीम से इसिा बुतलान ज़ाहहर
29
ज़मीन साकिन है
फ़रमा ददया यानी यह न तौरेत से है न तालीमात से बल्कि उन ़िबीसों
िी ़िुराफ़ात से। ताबाईन सहाबा ए किराम िे ताबेअ व ़िाददम हैं,
मख़्दम
ू अपने ़िुद्दाम िो ऐसे अलफ़ाज़ से ताबीर िर सिते हैं और
मतलब यह है जो हमने वाज़ेह किया व ललल्लाहहल हि।
(7) इस सारी तहरीर में मुझे आपसे इस फफ़करे िा ज़्यादा
ताज्जुब हुआ कि "हज़रत अब्दल्ल ु ाह इब्न ए मसऊद रदद अल्लाहु
तआला अन्हु ने आसमान िे सुिून फ़ी मिाकनही िी तसरीह फ़रमा
दी मगर ज़मीन िे बारे में ऐसा न फ़रमाया, ़िामोशी फ़रमाई" इसे
आपने अपनी मुश्किल िा हल तसव्वुर किया। िाब अहबार ने
आसमान ही िा घूमना बयान किया था और यहूद इसी कदर िे
काइल थे, ज़मीन िो वह भी साकिन मानते थे बल्कि 1530 से पहले
(खजसमें िोपरकनिस ने हरित ए ज़मीन िी कबदअत ए दाल्ला िो
कि दो हज़ार बरस से मुदा पडी थी, खजलाया) नसारा भी सुिून ए अद़
ही िे काइल थे। इसी कदर यानी ससफ़़ दौरा ए आसमान िा इन
हज़रात ए आललयात िे हुज़ूर तज़किरा हुआ, उसिी तिज़ीब फ़रमा
दी, दौरा ए ज़मीन िहा किसने था कि उसिा रद फ़रमाते अगर िोई
ससफ़़ ज़मीन िा दौरा िहता सहाबा इसी आयत ए िरीमा से उसिी
तिज़ीब िरते और अगर िोई आसमान व ज़मीन दोनों िा दौरा
बताता, सहाबा इसी आयत से दोनों िा इब्ताल फ़रमाते, जवाब ब
कदर ए सवाल देख ललया, यह न देखा कि खजस आयत से वह सनद
लाए उसमें आसमान व ज़मीन दोनों िा खज़क्र है या ससफ़़ आसमान
िा, आयत पदढए सराहतन दोनों एि हालत पर मज़िू र हैं, दोनों पर
एि ही हुक्म है। जब हस्ब ए इरशाद ए सहाबा आयत ए िरीमा

30
ज़मीन साकिन है
मुतलक हरित िा इंिार फ़रमाती है और वह इंिार आसमान व
ज़मीन दोनों िे ललए एि नस्ट्क एि लफ्जज़
‫ا ْن ت ُز ْوْل‬
में है खजसिी ज़मीर दोनों िी तरफ़ है तो कत्अन आयत ने
ज़मीन िी भी हर गूना हरित िो बाकतल फ़रमाया खजस तरह
आसमान िी। एि शख़्स िहे हज़रत सय्यिदन ु ा युसुफ़ अलैहहस
सलातो विलाम ने आफ़ताब िो अपने ललए सज्दा िरते न देखा
था, इस पर आललम फ़रमाए, वह झूटा है, आयत ए िरीमा में है,

ْ ُ ُ ‫ت احد عشر ک ۡوکبا و الش ْمس و الْقمر را ْی‬


‫ُت ِیلْ ٰس ِج ِد ْین‬ ُ ‫اِ ِنْ را ْی‬
मैंने ग्यारह ससतारों और सूरज और चााँद िो अपने ललए सज्दा
िरते देखा। इसिे बाद एि दस ू रा शख़्स उठे और चााँद िो साखजद
देखने से मुंकिर हो और िहे कुरबान जाइए आललम ने सूरज िे सज्दा
िी तसरीह फ़रमाई मगर चााँद िे बारे में ऐसा न फ़रमाया, ़िामोशी
फ़रमाई। उसे क्या िहा जाएगा। अब तो आपने ़ियाल फ़रमा ललया
होगा कि काइल ए हरित ए अद़ िो अखजल्ला ए सहाबा ए किराम
बल्कि ़िुद साफ़ ज़ाहहर नस ए कुरआन ए अज़ीम से गुरेज़ िे ससवा
िोई चारा नहीं और यह मआज़ अल्लाह ़िुसरानुम मुबीन है खजससे
अल्लाह तआला हमें और आप और सब अहले सुन्नत िो बचाए,
आमीन।
(8) अजब कि आपने आफ़ताब िा ज़वाल न सुना, इसे तो मैंने
आपसे कबलमुशाफ़ा िह ददया था।
(अ) हदीसों में कितनी जगह
31
ज़मीन साकिन है
‫زالت الشمس‬
है बल्कि कुरआन ए अज़ीम में है,

‫ا ِق ِم الصلٰوۃ ل ُِدل ُْو ِك الش ْم ِس ـ‬

तफ़सीर इब्न ए मरदकवया में अमीरुल मोफमनीन उमर रदद


अल्लाहु तआला अन्हु से है नबी िरीम सल्लल्लाहु तआला अलैहह
वसल्लम ने

‫ل ُِدل ُْو ِك الش ْم ِس‬

िी तफ़सीर में फ़रमाया,

‫لزوال الشمس ۔‬

इब्न ए जरीर ने अब्दल्ल


ु ाह इब्न ए मसऊद रदद अल्लाहु तआला
अन्हु से ररवायत िी रसूल उल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहह
वसल्लम ने फ़रमाया,

‫اتان جربئیل لدلوك الشمس حنی زالت فصىل یب الظھر ۔‬

नीज़ अबू हुरैरा रदद अल्लाहु तआला अन्हु से,


‫کان رسول اهلل صىل اهلل تعایل علیه وسلم یصىل الظھر اذا زالت‬
‫الشمس ثم تال اقِ ِم الصلٰوۃ ل ُِدل ُْو ِك الش ْم ِس ـ‬

नीज़ फमस्ल सईद इब्न ए मंसूर अब्दल्ल


ु ाह इब्न ए अब्बास रदद
अल्लाहु तआला अन्हम
ु ा से
32
ज़मीन साकिन है

‫دلوکہا زوالہا ـ‬

बज़्जार व अबू शे़ि व इब्न ए मरदकवया ने अब्दल्ल


ु ाह इब्न ए
उमर रदद अल्लाहु तआला अन्हम ु ा से
‫دلوك الشمس زوالھا ۔‬

अब्दरु रज़्जाक ने मुसदन्नफ़ में अबु हुरैरा रदद अल्लाहु तआला


अन्हु से

‫دلوك الشمس اذا زالت عن بطن السماء ۔‬

मजमा ए कबहारुल अनवार में है,

‫زاغت الشمس مالت و زالت عىل اعىل درجات ارتفاعھا ۔‬

फफ़क़्ह में वक़्त ए ज़वाल हर किताब में मज़िू र और अवाम ति


िी ज़बानों पर मशहूर। क्या उस वक़्त आफ़ताब अपने मदार से बाहर
कनिल जाता है और अहसनुल ़िाललकीन जल्ल व अला ने जहााँ ति
हरित िा उसे इमिान ददया है उससे आगे पांव िै लाता है। हाशा
मदार ही में रहता है और फिर ज़वाल हो गया। यूाँही ज़मीन अगर दौरा
िरती ज़रूर उसे ज़वाल होता अगरचे मदार से न कनिलती, इस पर
अगर यह ़ियाल जाए कि एि जगह से दस ू री जगह सरिना तो
आफ़ताब िो हर वक़्त है फिर हर वक़्त िो ज़वाल क्यों नहीं िहते तो
यह महज़ जाहहलाना सवाल होगा।

33
ज़मीन साकिन है
वजह ए तसफमया मुत्ताररद नहीं होती। िु तुब में यह मशहूर
हहिायत है कि मुत्ताररद मानने वाले से पूछा खजरजीर यानी चीने िो
कि एि ककस्म िा अनाज है खजरजीर क्यों िहते हैं। िहा,

‫ْلنه یتجرجر عىل اْلرض ـ‬

इसललए कि वह ज़मीन पर जुंकबश िरता है। िहा, तुम्हारी दाढी


िो खजरजीर क्यों नहीं िहते, यह भी तो जुंकबश िरती है। कारूरे िो
कारूरा क्यों िहते हैं। िहा,
‫ْلن الماء یقر فیھا ـ‬

इसललए कि उसमें पानी ठहरता है। िहा, तुम्हारे पेट िो कारूरा


क्यों नहीं िहते, उसमें भी तो पानी ठहरता है। यहााँ तीन ही मौज़ा
मुमताज़ थे उफ़क ए शक़ी व ग़बी व दाइरा ए कनस्ट्फ़ुन नहार, उनसे
सरिने िा नाम तुलूअ व ग़ुरूब रखा कि यही अंसब व वजह ए तमाइज़
था और उससे तजावुज़ िो ज़वाल िहा अगरचे जगह से ज़वाल
आफ़ताब िो कबला शुबह हर वक़्त है, िरीमा,

ۡ ‫و الش ْم ُس ت ْج ِر‬
‫ی ل ُِم ْستق ِر لھا‬

में अब्दल्ल
ु ाह इब्न ए मसऊद रदद अल्लाहु तआला अन्हु िी
ककराअत है,

‫ْل ُم ْستق ِر لھا‬

यानी सूरज चलता है किसी वक़्त उसे करार नहीं। ऊपर गुज़रा
कि करार िा मुकाकबल ज़वाल है, जब किसी वक़्त करार नहीं तो हर
34
ज़मीन साकिन है
वक़्त ज़वाल है अगरचे तस्मीया में एि ज़वाल ए मुअिन िा नाम
ज़वाल रखा, ग़ज़़ िलाम इसमें है कि अहादीस ए मरफ़ूआ सय्यिद ए
आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम व आसार ए सहाबा ए
किराम व इज्मा अहले इस्लाम ने आफ़ताब िा अपने मदार में रहिर
एि जगह से सरिने िो ज़वाल िहा अगर ज़मीन मुतहररिि होती तो
यकीनन एि जगह से उसिा सरिना ही ज़वाल होता अगरचे मदार
से बाहर न जाती लेकिन कुरआन ए अज़ीम ने साफ़ इरशाद में उसिे
ज़वाल िा इंिार फ़रमाया है तो कतअन वाखजब कि ज़मीन असलन
मुतहररिि न हो।

(ब) बल्कि ़िुद यही ज़वाल कि कुरआन व हदीस व फफ़क़्ह व


ज़बान ए जुमला मुसललमीन सबमें मज़िू र काइलान ए दौरा ए ज़मीन
उसे ज़मीन ही िा ज़वाल िहेंगे कि वह हरित ए यौफमया उसी िी
जाकनब मंसूब िरते हैं यानी आफ़ताब यह हरित नहीं िरता बल्कि
ज़मीन अपने फमहवर पर घूमती है जब वह हहिा खजस पर हम हैं
घूमिर आफ़ताब से आड में हो गया रात हुई जब घूमिर आफ़ताब
िे सामने आया िहते हैं आफ़ताब ने तुलूअ किया हालांकि ज़मीन
यानी उस हहिा ए अद़ ने जाकनब ए शम्स रु़ि किया जब इतना घूमा
कि आफ़ताब हमारे सरों िे मुहाज़ी हुआ यानी हमारा दाइरा कनस्ट्फ़ुन
नहार मरिज़ ए शम्स िे मुकाकबल आया दोपहर हो गया जब ज़मीन
यहााँ से आगे बढी दोपहर ढल गया, िहते हैं कि आफ़ताब िो ज़वाल
हुआ हालांकि ज़मीन िो हुआ, यह उनिा मज़हब है और सराहतन
कुरआन ए अज़ीम िा मुिज़्जज़्जब व मुिलजब है। मुसललमीन तो
मुसललमीन, बेरूत वग़ैरह िे सुफ़हा ए काइलान ए हरित ए अद़ भी
35
ज़मीन साकिन है
खजनिी ज़बान अरबी है उस वक़्त िो वक़्त ए ज़वाल और धूप घडी
िो फमज़वला िहते हैं यानी ज़वाल पहचानने िा आला। और अगर
उनसे िहहए क्या शम्स ज़वाल िरता है। िहेंगे नहीं बल्कि ज़मीन
हालांकि वह मदार से बाहर न गई। तो आपिी तावील मुवाफफ़कीन
व मु़िाललफ़ीन किसी िो भी मकबूल नहीं (ज) औरों से क्या िाम,
आप तो कबिज़्ललहह तआला मुसलमान हैं, इय्यब्तदा ए वक़्त ए ज़ोहर
ज़वाल से जानते हैं, क्या हज़ार बार न िहा होगा कि ज़वाल िा वक़्त
है, ज़वाल होने िो है, ज़वाल हो गया। िाहे से ज़वाल हुआ, दाइरा ए
कनस्ट्फ़ुन नहार से, किसिा ज़वाल हुआ, आपिे नज़दीि ज़मीन िा
कि उसी िी हरित ए फमहवरी से हुआ हालांकि अल्लाह तआला
अज़्जा व जल्ल फ़रमाता है कि ज़मीन िो ज़वाल नहीं, अब ़िुद
मानिर कि ज़मीन मुतहररिि हो तो रोज़ाना अपने मदार िे अंदर ही
रहिर उसे ज़वाल होता है, दन ु या से ज़वाल ए िु फ़्फार पेश िरने िा
क्या मौका रहा। इंसाफ़ शत़ है और कुरआन ए अज़ीम िे इरशाद पर
ईमान लाखज़म व कबल्लाहहत तौफ़ीक। (द) यहााँ से कबहम्दिहह तआला
हज़रत मुअल्लल्लमुत तहहयात रदद अल्लाहु तआला अन्हु िे इस इरशाद
िी ़िूब तौज़ीह हो गई कि ससफ़़ हरित ए फमहवरी ज़वाल िो बस है।
(9) कबहम्दिहह तआला तीन आयतें यह गुज़री,
आयत 1 :
‫كـ‬ ٰ ‫اِن‬
ُ ‫الل ُی ْم ِس‬
आयत 2 :
‫و لئ ِْن زالتا ـ‬

36
‫ै‪ज़मीन साकिन ह‬‬
‫‪आयत 3 :‬‬
‫ل ُِدل ُْو ِك الش ْم ِس ـ‬

‫‪आयत 4 :‬‬
‫فلما افلت ـ‬

‫‪आयत 5 :‬‬
‫و س ِبح بِح ْم ِد ر ِبك ق ْبل ُطل ُْو ِع الش ْم ِس و ق ْبل الْغ ُُر ْو ِب ـ‬

‫‪आयत 6 :‬‬
‫و س ِبح ِبح ْم ِد ر ِبك ق ْبل ُطل ُْو ِع الش ْم ِس و ق ْبل غ ُُر ْو ِبھا ـ‬

‫‪आयत 7 :‬‬

‫ح ٰیت اِذا بلغ مطلِع الشم ِس وجدھا تطل ُ ُع ع ٰىل ق ْوم ل ْم ن ْجع ْل ل ُھ ْم‬
‫م ْ‬
‫ِن دُ ْونِھا ِسرتا ـ‬

‫‪आयत 8 :‬‬

‫و تری الش ْمس اِذا طلع ْت ت ٰزو ُر ع ْن ک ْھ ِف ِھ ْم ذات الْی ِم ْ ِ‬


‫نی و اِذا‬
‫ت‬ ‫ال و ُھ ْم ِیف ْ ف ْجوۃ ِم ْن ُه ٰذ لِك م ْ‬
‫ِن ٰا ٰی ِ‬ ‫غربت تق ِْر ُض ُھ ْم ذات ِ‬
‫الشم ِ‬
‫ِٰ‬
‫الل ـ‬

‫‪तू आफ़ताब िो देखेगा जब तुलूअ िरता है उनिे ग़ार से दहनी‬‬


‫‪तरफ़ माइल होता है और जब डू बता है उनसे बाईं तरफ़ ितरा जाता‬‬

‫‪37‬‬
ज़मीन साकिन है
है हालांकि वह ग़ार िे खुले मैदान में हैं, यह कुदरत ए इलाही िी
कनशाकनयों में है। यूाँही सद्हा अहादीस इरशाद ए सय्यिद ए आलम
सल्लल्लाहु तआला अलैहह वसल्लम ़िुसूसन हदीस ए सहीह बु़िारी
और अबू ज़र रदद अल्लाहु तआला अन्ह,ु
‫قال النیب صىل اهلل تعایل علیه ْلیب ذر حنی غربت الشمس‬
‫اتدری ا ین تذھب قلت اهلل و رسوله اعلم قال فانھا تذھب حیت‬
‫تسجد تحت العرش فتستأذن فیؤذن لھا و یوشك ان تسجد فال‬
‫یقبل منھا و تستأذن فال یؤذن لھا یقال لھا ارجیع من حیث‬
ْ ‫جئت فتطلع من مغربھا فذلك قوله تعایل و الش ْم ُس ت ْج ِر‬
‫ی‬
‫ل ُِم ْستق ِر لھا ٰذ لِك ت ْق ِد ْی ُر الْع ِز ْی ِز الْع ِل ْی ِم ـ‬

यूाँही हज़ारहा आसार ए सहाबा इज़ाम व ताबाईन ए किराम व


इज्मा ए उम्मत खजन सबमें खज़क्र है कि आफ़ताब तुलूअ व ग़ुरूब िरता
है, आफ़ताब िो वस्त समा में ज़वाल होता है, आफ़ताब िी तरह
रौशन दलाइल हैं कि ज़मीन साकिन महज़ है बदीही है और ़िुद
मु़िाललफ़ीन िो तसलीम कि तुलूअ व ग़ुरूब व ज़वाल नहीं मगर
हरित ए यौफमया से तो खजसिे यह अहवाल हैं हरित ए यौफमया उसी
िी हरित है तो कुरआन ए अज़ीम व अहादीस ए मुतवाकतरा व इज्मा
ए उम्मत से साकबत कि हरित ए यौफमया हरित ए शम्स है न कि
हरित ए ज़मीन लेकिन अगर ज़मीन हरित िरती तो हरित ए
यौफमया उसी िी हरित होती जैसा कि मज़ऊम ए मु़िाललफ़ीन है तो
रौशन हुआ कि ज़ोम ए साइंस बाकतल व मरददू है। फिर शम्स िी
38
ज़मीन साकिन है
हरित ए यौफमया खजससे तुलूअ व ग़ुरूब व ज़वाल है, न होगी मगर यूाँ
कि वह कगद़ ए ज़मीन दौरा िरता है तो कुरआन व हदीस व इज्मा से
साकबत हुआ कि आफ़ताब हौल ए अद़ ए दाइरा है, ला जरम ज़मीन
मदार ए शम्स िे जौफ़ में है तो नामुमकिन है कि ज़मीन कगद़ ए शम्स
दौरा िरे और आफ़ताब मदार ए ज़मीन िे जौफ़ में हो तो
कबहम्दिल्लाहह तआला आयात ए मुतािाससरा व अहादीस ए
मुतावाकतरा व इज्मा ए उम्मत ए ताहहरा से वाज़ेह हुआ कि ज़मीन िी
हरित ए फमहवरी व मदारी दोनों बाकतल हैं व ललल्लाहहल हि। ज़्यादा
से ज़्यादा मु़िाललफ़ यहााँ यह िह सिता है कि ग़ुरूब तो हकीकतन
शम्स िे ललए है कि वह ग़ीबत है और आफ़ताब ही इस हरित ए ज़मीन
िे बाइस कनगाह से ग़ायब होता है और ज़वाल हकीकतन ज़मीन िे
ललए है कि यह हटती है न कि आफ़ताब और तुलूअ हकीकतन किसी
िे ललए नहीं कि तुलूअ सऊद और ऊपर चढना है। हदीस में है,

‫لک ل حد مطلع ۔‬

कनहाया व दरु ए नसीर व मजमउल कबहार व कामूस में है,


‫ای مصعد یصعد الیه من عرفة علمیه ۔‬
नीज़ सलासा उसूल ताजुल उरुस में है,
‫مطلع الجبل مصعدہ ـ‬
हदीस में है,
‫طلع المنرب ۔‬

39
ज़मीन साकिन है
मजमउल कबहार में है,
‫ای عالہ ـ‬
ज़ाहहर है कि ज़मीन आफ़ताब पर नहीं चढती और मु़िाललफ़
िे नज़दीि आफ़ताब भी उस वक़्त ज़मीन पर न चढा कि तुलूअ
उसिी हरित से नहीं ला जरम तुलूअ ससरे से बाकतल महज़ है मगर
मिान ए ज़मीन िो हरित ए ज़मीन महसूस नहीं होती, उन्हें वहम
गुज़रता है कि आफ़ताब चलता, ढलता है ललहाज़ा तुलूअ व ज़वालुश
शम्स िहते हैं, यह िोई िाफफ़र िह सिे , मुसलमान क्योंिर वह रवा
रख सिे कि जाहहलाना वहम जो लोगों िो गुज़रता है कुरआन ए
अज़ीम भी मआज़ अल्लाह इसी वहम पर चला है और वाके अ िे
ख़िलाफ़ तुलूअ व ज़वाल िो आफ़ताब िी तरफ़ कनस्बत फ़रमा ददया
है वल इयाज़ु कबल्लाहह तआला। ला जरम मुसलमान पर फ़ज़़ है कि
हरित ए शम्स व सुिून ए ज़मीन पर ईमान लाए वल्लाहुल हादी।
(10) सूरह ए ताहा व सूरह ए ज़ु़िरुफ़ दो जगह इरशाद हुआ है,

‫ی جعل لک ُُم ْاْلرض م ْھدا ـ‬


ْ ‫ال ِذ‬
दोनों जगह ससफ़़ िू फफ़यों फमस्ल इमाम आससम ने खजन िी
ककराअत हहिंद में राइज है महदा पढा, बाकी तमाम अइम्मा ए ककराअत
ने फमहादा ब खज़यादत ए अललफ़। दोनों िे माना हैं कबछौना। जैसे
फ़श़ व फफ़राश यूाँही महद व फमहाद।
(अ) पस ककराअत ए आम अइम्मा ने ककराअत ए िू फ़ी तफ़सीर
फ़रमा दी कि महद से मुराद फ़श़ है। मदाररि शरीफ़ सूरह ए ताहा में
है,
40
‫ै‪ज़मीन साकिन ह‬‬
‫(مهدا) كوىف وغريهمَ مهادا و هما لغتان لما یبسط و یفرش ـ‬
‫(مهداَ)‬

‫‪उसी िी सूरह ए ज़ु़िरुफ़ में है,‬‬


‫(مهداَ) كوىف وغريه مهاداَ اى موضو ع قرا رَ ـ (مهداَ)‬

‫‪मुआललम शरीफ़ में है,‬‬

‫قرأ اھل الکوفة مھدا ٰھھنا و یف الزخرف فیکون مصدرا ای فرشا‬


‫و قرا اْلخرون مھادا کقوله تعایل ا ل ْم ن ْجع ِل ْاْلرض ِمھدا ای‬
‫فراشا و ھو اسم ما یفرش کالبساط ۔‬

‫‪तफ़सीर इब्न ए अब्बास में दोनों जगह है,‬‬

‫(مھدا )فراشا‬

‫ंे‪नीज़ यही मज़मून कुरआन ए अज़ीम िी बहुत आयात म‬‬


‫‪इरशाद है, फ़रमाता है,‬‬

‫ا ل ْم ن ْجع ِل ْاْلرض ِمھدا ـ‬

‫‪फ़रमाता है,‬‬

‫الل جعل لک ُُم‬


‫و ْاْلرض فر ْش ٰنھا ف ِنعم ا ل ْٰم ِھ ُد ْون ـ رفامات ےہ‪ ،‬و ٰ ُ‬
‫ْاْلرض ِبساطا ـ‬

‫‪फ़रमाता है,‬‬
‫‪41‬‬
ज़मीन साकिन है

‫ی جعل لک ُُم ْاْلرض ِفراشا ـ‬


ْ ‫ال ِذ‬
और कुरआन िी बेहतर तफ़सीर वह है कि ़िुद कुरआन ए िरीम
फ़रमाए।

(ब) बच्चे ही िा महद हो तो वह क्या उसिे कबछौने िो नहीं


िहते। जलालैन सूरह ए ज़ु़िरुफ़ में है,

‫مھادا فراشا کالمھد للصیب ۔‬

ला जरम हज़रत शे़ि सादी व शाह वली उल्लाह ने फमहादा िा


तरखजमा ताहा में फ़श़ और ज़ु़िरुफ़ में कबसात ही किया और शाह
रफ़ीउद्दीन और शाह अब्दल
ु काददर ने दोनों जगह कबछौना।

(ज) गहवारा ही लो तो उससे तशबीह आराम में होगी न कि


हरित में, ज़ाहहर कि ज़मीन अगर ब फ़ज़़ ए बाकतल जुंकबश भी िरती
तो उससे न साकिनों िो नींद आती न गमी िे वक़्त हवा लाती। तो
गहवारा से उसे ब हैससयत ए जुंकबश मुशाबहत नहीं तो ब हैससयत ए
आराम व राहत है। ़िुद गहवारा से अस्ल मकसद यही है, न कि
हहलाना, तो वजह ए शुबह वही है न यह, ला जरम उसी िो मुफ़स्सिरीन
ने इस्जख़्तयार किया।

(द) लुत्फफ़ यह कि उलमा ने इस तशबीह ए महद से भी ज़मीन


िा सुिून ही साकबत किया कबिु ल नकीज़ उसिा जो आप चाहते
हैं। तफ़सीर ए िबीर में है
42
ज़मीन साकिन है
‫کون اْلرض مھدا انما حصل ْلجل کونھا واقفة سا کنة و لما کان‬
‫المھد موضع الراحة للصیب جعل اْلرض مھدا لکثرۃ ما فیھا من‬
‫الراحات ـ‬

़िाखज़न में है,


‫جعل لکم اْلرض مھدا( معناہ واقفة سا کنة یمکن اْلنتفاع بھا‬
‫و لما کان المھد موضع الراحة للصیب فلذلك سم اْلرض مھادا‬
‫لکثرۃ ما فیھا من الراحة للخلق ـ‬

़ितीब शशरबीनी फिर िु तूहात ए इलाहहया में ज़ेर ए िरीमा ए


ज़ु़िरुफ़ है,
‫ای لو شاء لجعلھا متحرکة فال یمکن اْلنتفاع بھا فاْلنتفاع بھا‬
‫انما حصل لکونھا مسطحة قارۃ سا کنة ـ‬

इस इरशाद ए उलमा पर कि ज़मीन मुतहररिि होती तो उससे


इंकतफ़ाअ होता। िासा लीसान फ़लसफ़ा ए जदीदा िो अगर यह
शुबह लगे कि "उसिी हरित महसूस नहीं" तो उनसे िहहए यह तुम्हारी
हवस ए ़िाम है। फ़ौज़ ए मुबीन देखखए हमने ़िुद फ़लसफ़ा ए जदीदा
िे मुसल्लमात ए अदीदा से साकबत किया है कि अगर ज़मीन मुतहररिि
होती जैसा वह मानते हैं तो यकीनन उसिी हरित हर वक़्त सख़्त
ज़लज़ला और शदीद आाँसधयां लाती, इंसान, हैवान िोई उस पर न
बस सिता। ज़बान से एि बात हााँि देना आसान है मगर उस पर जो
काहहर रद हों उनिा उठाना हज़ारहा बांस पैराना है।
43
ज़मीन साकिन है
(11) दीबाचा में जो आपने दलाइल ए हरित ए ज़मीन िु तुब
ए अंग्रेज़ी से नकल फ़रमाए, अलहमदु ललल्लाह उनमें िोई नाम िो
ताम नहीं, सब पाददर हवा हैं। खज़न्दगी कबल ़िैर है तो आप इन शा
अल्लाह तआला इन सबिा रद ए बलीग़ फ़िीर िी किताब फ़ौज़ ए
मुबीन िी फ़सल ए चहारुम में देखेंगे बल्कि वह आठ सतरें जो मैंने
अव्वल में ललख दी हैं कि यूरोप वालों िो तज़़ ए इश्कस्तदलाल असलन
नहीं आता, उन्हें इस्बात ए दावा िी तमीज़ नहीं, उनिे औहाम खजनिो
बनाम ए दलील पेश िरते हैं यह-यह इल्लतें रखते हैं। मुसदन्नफ़ ज़ी
फ़हम मुनाखज़रा दां िे ललए वही उनिे रद में बस हैं कि दलाइल भी
उन्हीं इल्लतों िे पाबंद ए हवस हैं और ब फ़ज़्ललहह तआला आप जैसे
दीनदार व सुन्नी मुसलमान िो तो इतना ही समझ लेना िाफ़ी है कि
इरशाद ए कुरआन ए अज़ीम व नबी िरीम अलैहह अफ़ज़लुस सलातो
वत् तसलीम व मसअला ए इस्लामी व इज्मा ए उम्मत ए कगरामी िे
ख़िलाफ़ क्योंिर िोई दलील काइम हो सिती है, अगर कबल फ़ज़़
उस वक़्त हमारी समझ में उसिा रद न आए जब भी यकीनन वह
मरददू और कुरआन व हदीस व इज्मा सच्चे। यह है कबहम्दिल्लाहह शान
ए इस्लाम।

मुहहब ए फ़िीर साइंस यूाँ मुसलमान न होगी कि इस्लामी


मसाइल िो आयात व नुसूस में तावीलात दरू अज़िार िरिे साइंस
िे मुताकबक िर ललया जाए यूाँ तो मआज़ अल्लाह इस्लाम ने साइंस
कबूल िी न कि साइंस ने इस्लाम, वह मुसलमान होगी तो यूाँ कि
खजतने इस्लामी मसाइल से उसे ख़िलाफ़ है सबमें मसअला ए इस्लामी
िो रौशन किया जाए, दलाइल ए साइंस िो मरददू व पामाल िर
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ज़मीन साकिन है
ददया जाए, जा ब जा साइंस ही िे अकवाल से इस्लामी मसअला िा
इस्बात हो, साइंस िा इब्ताल व इस्कात हो, यूाँ काबू में आएगी। और
यह आप जैसे फ़हीम साइंसदां िो कबइज़्लनहह तआला दश ु वार नहीं
आप उसे ब चश्मे पसंद देखते हैं,

‫و عنی الرضاء عن کل عیب کلیلة ـ‬

उसिे मआइब मख़्फ़ी रहते हैं, मौला अज़्जा व जल्ल िी


इनायत और हुज़ूर सय्यिद ए आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहह
वसल्लम िी इआनत पर भरोसा िरिे उसिे दआवी ए बाकतला
मु़िाललफ़ा ए इस्लाम िो ब नज़र ए तहकीर व मु़िाललफ़त देखखए,
उस वक़्त इन शा अल्लाहुल अज़ीज़ुल कदीर उसिी मुलम्मा िाररयां
आप पर खुलती जाएंगी और आप खजस तरह अब देवबंददया
मख़्ज़ूलीन पर मुजाहहद हैं यूाँही साइंस िे मुकाकबल आप नुसरत ए
इस्लाम िे ललए तैयार हो जाएंगे कि

‫و لکن عنی السخط تبدی المساویا ۔‬

मौलवी कुद्दद्दसा ससरु़हुल मानवी फ़रमाते हैं,


दश्म
ु न ए राह ए ़िुदा रा ़िवार दार ___ दलु द रा फमम्बर मुाँह
बरदार दार।
रब ए िरीम कबजाहे नबी रऊफ़ रहीम अलैहह अफ़ज़लुस
सलातो वत् तसलीम हमें और आप और हमारे भाइयों अहले सुन्नत
़िाददमान ए फमल्लत िो नुसरत ए दीन ए हक िी तौफ़ीक बख़्शे और
कबूल फ़रमाए।

45
‫ै‪ज़मीन साकिन ह‬‬
‫آمنی الٰه الحق اٰمنی و ُ‬
‫اعف عنا و ا ْغ ِفر لنا و ارح ْمنا ا نْت م ْولٰىنا‬
‫ک ِف ِر ْین ـ الحمد هلل رب العلمنی و صىل‬
‫فا ْن ُصرنا عىل الْق ْو ِم الْ ٰ‬
‫اهلل تعایل عىل سیدنا و مولٰینا محمد و ٰا له و صحبه و ابنه و‬
‫حزبه اجمعنی اٰمنی و اهلل تعایل اعلم ـ‬

‫العطایا النبویہ یف الفتاوی الرضویہ‪ ،‬جـ ‪ ،12/12‬صـ ‪ 289-273‬و جـ‪ ،27/30‬صـ ‪ 228-195‬ـ‬

‫تمت بالخی‬

‫‪46‬‬
ज़मीन साकिन है

कहिंदी ज़़ुबान में हमारी दूसरी किताबें और रसाइल :


ििारे तिरीर )अि तक 13 हिस्सों में(
अल्लाि त'आिा को ऊपरवािा या अल्लाि ममयााँ किना कै सा?
अजाने बििाि और सूरज का बनकिना
इश्के मजाजीी़ - मुुंतखि मजामीन का मजमुआ
गाना िजाना िुंि करो, तुम मुसिमान िो!
शिे मेराज गौसे पाक
शिे मेराज नािैन अशश पर
िजरते उवैस क़रनी का एक वाबकया
डॉक्टर ताहिर और वक़ारे ममल्लत
गैरे सिािा में रदिअल्लाहु त'आिा अन्हु का इस्तिमाि
चुंि वाबकयाते किशिा का तिक़ीी़क़ीी़ जाइजा
बििंते िव्वा
सेक्स नॉिेज
िजरते अय्यूि अिैहिस्सिाम के वाबकये पर तिक़ीी़क़
औरत का जनाजाी़
एक आशशक़ क़ी किानी अल्लामा इब्ने जौजीी़ क़ी जुिानी
40 अिािीसे शफा'अत
िैज, बनफास और इस्तििाजाी़ का ियान ििारे शरीअत से
बक़यामत के दिन िोगों को बकस के नाम के साथ पुकारा जाएगा?
जन और यक़़ीन

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